तंत्र सूत्र—विधि -72 (ओशो)

प्रकाश-संबंधी तीसरी विधि— ‘’भाव करो कि ब्रह्मांड एक पारदर्शी शाश्‍वत उपस्‍थिति है।‘’ अगर तुमने एल. एस. डी. या उसी तरह के मादक द्रव्‍य का सेवल किया हो, तो तुम्‍हें पता होगा कि कैसे तुम्‍हारे चारों और का जगत प्रकाश ओर रंगों के जगत में बदल जाता है। जो कि बहुत पारदर्शी और जीवंत मालूम पड़ता […]

तंत्र सूत्र—विधि -71 (ओशो)

‘या बीच के रिक्‍त स्‍थानों में यह बिजली कौंधने जैसा है—ऐसा भाव करो। थोड़े से फर्क के साथ यह विधि भी पहली विधि जैसी ही है। या बीच के रिक्‍त स्‍थानों में यह बिजली कौंधने जैसा है—ऐसा भाव करो।’ एक केंद्र से दूसरे केंद्र तक ताकी हुई प्रकाश-किरणों में बिजली के कौंधने का अनुभव करो—प्रकाश […]

तंत्र सूत्र—विधि -70 (ओशो)

‘अपनी प्राण शक्‍ति को मेरुदंड के ऊपर उठती, एक केंद्र की और गति करती हुई प्रकाश किरण समझो, और इस भांति तुममें जीवंतता का उदय होता है।’ योग के अनेक साधन अनेक उपाय इस विधि पर आधारित है। पहले समझो कि यह क्‍या है, और फिर इसके प्रयोग को लेंगे। मेरुदंड, रीढ़ तुम्‍हारे शरीर और […]

तंत्र सूत्र—विधि -69 (ओशो)

‘यथार्थत: बंधन और मोक्ष सापेक्ष है; ये केवल विश्‍व से भयभीत लोगों के लिए है। यह विश्‍व मन का प्रतिबिंब है। जैसे तुम पानी में एक सूर्य के अनेक सूर्य देखते हो, वैसे ही बंधन और मोक्ष को देखो।’ यह बहुत गहरी विधि है; यह गहरी से गहरी विधियों में से एक है। और विरले […]

तंत्र सूत्र—विधि -68 (ओशो)

जैसे मुर्गी अपने बच्‍चों का पालन-पोषण करती है, वैसे ही यथार्थ में विशेष ज्ञान और विशेष कृत्‍य का पालन-पोषण करो। इस विधि में मूलभूत बात है: ‘यथार्थ में।’ तुम भी बहुत चीजों का पालन पोषण करते हो; लेकिन सपने में, सत्‍य में नहीं। तुम भी बहुत कुछ करते हो; लेकिन सपने में सत्‍य में नहीं। […]

तंत्र सूत्र—विधि -67 (ओशो)

‘यह जगत परिवर्तन का है, परिवर्तन ही परिवर्तन का। परिवर्तन के द्वारा परिवर्तन को विसर्जित करो।’ पहली बात तो यह समझने की है कि तुम जो भी जानते हो वह परिवर्तन है, तुम्‍हारे अतिरिक्‍त जानने वाले के अतिरिक्‍त सब कुछ परिवर्तन है। क्‍या तुमने कोई ऐसी चीज देखी है। जो परिवर्तन न हो। जो परिवर्तन […]

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