तंत्र सूत्र—विधि -91 (ओशो)

दूसरी विधि: ‘’हे दयामयी, अपने रूप के बहुत ऊपर और बहुत नीचे, आकाशीय उपस्‍थिति में प्रवेश करो।‘’ यह दूसरी विधि तभी प्रयोग की जा सकती है, जब तुमने पहली विधि पूरी कर ली है। यह प्रयोग अलग से भी किया जा सकता है। लेकिन तब यह बहुत कठिन होगा। इसलिए पहली विधि पूरी करके ही […]

तंत्र सूत्र—विधि -90 (ओशो)

‘आँख की पुतलियों को पंख की भांति छूने से उनके बीच का हलकापन ह्रदय में खुलता है। और वहां ब्रह्मांड व्‍याप जाता है।’ विधि में प्रवेश के पहले कुछ भूमिका की बातें समझ लेनी है। पहली बात कि आँख के बाबत कुछ समझना जरूरी है। क्‍योंकि पूरी विधि इस पर निर्भर करती है। पहली बात […]

तंत्र सूत्र—विधि -89 (ओशो)

‘हे प्रिये, इस क्षण में मन, ज्ञान, प्राण, रूप, सब को समाविष्‍ट होने दो।’ यह विधि थोड़ी कठिन है। लेकिन अगर तुम इसे प्रयोग कर सको तो यह विधि बहुत अद्भुत और सुंदर है। ध्‍यान में बैठो तो कोई विभाजन मत करो;ध्‍यान में बैठे हुए सब को—तुम्‍हारे शरीर, तुम्‍हारे मन, तुम्‍हारे प्राण, तुम्‍हारे विचार, तुम्‍हारे […]

तंत्र सूत्र—विधि -88 (ओशो)

‘प्रत्‍येक वस्‍तु ज्ञान के द्वारा ही देखी जाती है। ज्ञान के द्वारा ही आत्‍मा क्षेत्र में प्रकाशित होती है। उस एक को ज्ञाता और ज्ञेय की भांति देखो।’ जब भी तुम कुछ जानते हो, तुम उसे ज्ञान के द्वारा, जानने के द्वारा जानते हो। ज्ञान की क्षमता के द्वारा ही कोई विषय तुम्‍हारे मन में […]

तंत्र सूत्र—विधि -87 (ओशो)

मैं हूं, यह मेरा है। यह-यह है। हे प्रिये, भाव में भी असीमत: उतरो। ‘मैं हूं।’ तुम इस भाव में कभी गहरे नहीं उतरते हो कि मैं हूं। है प्रिये, ऐसे भाव में भी असीमत: उतरो। मैं तुम्‍हें एक झेन कथा कहता हूं। तीन मित्र एक रास्‍ते से गुजर रहे थे संध्‍या उतर रही थी। […]

तंत्र सूत्र—विधि -86 (ओशो)

‘भाव करो कि मैं किसी ऐसी चीज की चिंतना करता हूं जो दृष्‍टि के परे है, जो पकड़ के परे है। जो अनस्‍तित्‍व के, न होने के परे है—मैं।’ ‘’भाव करो कि मैं किसी ऐसी चीज कीं चिंतना करता हूं जो दृष्‍टि के परे है।‘’ जिसे देखा नहीं जा सकता। लेकिन क्‍या तुम किसी ऐसी […]

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