‘अपनी प्राण शक्ति को मेरुदंड के ऊपर उठती, एक केंद्र की और गति करती हुई प्रकाश किरण समझो, और इस भांति तुममें जीवंतता का उदय होता है।’
योग के अनेक साधन अनेक उपाय इस विधि पर आधारित है। पहले समझो कि यह क्या है, और फिर इसके प्रयोग को लेंगे।
मेरुदंड, रीढ़ तुम्हारे शरीर और मस्तिष्क दोनों का आधार है। तुम्हारा मस्तिष्क, तुम्हारा सिर तुम्हारे मेरुदंड का ही अंतिम छोर है। मेरुदंड पूरे शरीर की आधारशिला है। और अगर मेरुदंड युवा है तो तुम युवा हो। और अगर मेरुदंड बूढा है तो तुम बढ़े हो। अगर तुम अपने मेरुदंड को युवा रख सको तो बूढा होना कठिन है। सब कुछ इस मेरूदंड पर निर्भर है। अगर तुम्हारा मेरूदंड जीवंत है तो तुम्हारे मन मस्तिष्क में मेधा होगी। चमक होगी। और अगर तुम्हारा मेरूदंड जड़ और मृत है तो तुम्हारा मन भी बहुत जड़ होगा। समस्त योग अनेक ढंग से तुम्हारे मेरूदंड को जीवंत, युवा,ताजा और प्रकाशपूर्ण की चेष्टा करता है।
मेरूदंड के दो छोर है। उसके आरंभ का काम-केंद्र है और उसके शिखर पर सहस्त्रार है—सिर के ऊपर जो सातवां चक्र है। मेरूदंड का जा आरंभ है वह पृथ्वी से जुड़ा है। कामवासना तुम्हारे भीतर सर्वाधिक पार्थिव चीज है। तुम्हारे मेरूदंड के आरंभिक चक्र के द्वारा तुम निसर्ग के संपर्क में आते हो। जिसे सांख्य प्रकृति कहता है—पृथ्वी,पदार्थ। और अंतिम चक्र से सहस्त्रार से तुम परमात्मा के संपर्क में होते हो।
तुम्हारे अस्तित्व के ये दो ध्रुव है। पहला काम केंद्र है, और उसके शिखर पर सहस्त्रार है। अंग्रेजी में सहस्त्रार के लिए कोई शब्द नहीं है। ये ही दो ध्रुव है। तुम्हारा जीवन या तो कामोन्मुख होगा या सहस्त्रोन्मुख होगा। या तो तुम्हारी ऊर्जा काम केंद्र से बहकर पृथ्वी में वापस जाएगी,या तुम्हारी ऊर्जा सहस्त्रार से निकलकर अनंत आकाश में समा जाएगी। तुम सहस्त्रार से ब्रह्म में, परम सत्ता में प्रवाहित हो जाते हो। तुम काम केंद्र से पदार्थ जगत में प्रवाहित होते हो। ये दो प्रवाह है; ये दो संभावनाएं है।
जब तक तुम ऊपर की और विकसित नहीं होते, तुम्हारे दुःख कभी समाप्त नहीं होगे। तुम्हें सुख की झलकें मिल सकती है; लेकिन वे झलकें ही होगी और बहुत भ्रामक होंगी। जब ऊर्जा ऊर्ध्वगामी होगी। तुम्हें सुख की अधिकाधिक सच्ची झलकें मिलने लगेंगी। और जब ऊर्जा सहस्त्रार पर पहुँचेगी तुम परम आनंद को उपलब्ध हो जाओगे। वही निर्वाण है। तब झलक नहीं मिलती, तुम आनंद ही हो जाते हो।
योग और तंत्र की पूरी चेष्टा यह है कि कैसे ऊर्जा को मेरूदंड के द्वारा ऊध्र्वगामी बनाया जाए,कैसे उसे गुरूत्वाकर्षण के विपरीत गतिमान किया जाये। काम या सेक्स आसान है, क्योंकि वह गुरूत्वाकर्षण के विपरीत नहीं है। पृथ्वी सब चीजों को अपनी ओर खींच रही है। तुम्हारी काम ऊर्जा को भी पृथ्वी नीचे खींच रही है। तुमने शायद यह नहीं सुना हो, लेकिन अंतरिक्ष यात्रियों ने यह अनुभव किया है कि जैसे ही वे पृथ्वी के गुरूत्वाकर्षण के बाहर निकल जाते है,उनकी कामुकता बहुत क्षण हो जाती है। जैसे-जैसे शरीर का वजन कम होता है। कामुकता विलीन हो जाती है।
पृथ्वी तुम्हारी जीवन-ऊर्जा को नीचे की तरफ खींचती है। और यह स्वाभाविक है। क्योंकि जीवन-ऊर्जा पृथ्वी से आती है। तुम भोजन लेते हो, और उससे तुम अपने भीतर जीवन ऊर्जा निर्मित कर रहे हो। यह ऊर्जा पृथ्वी से आती है। और पृथ्वी उसे वापस खींचती है। प्रत्येक चीज अपने मूल स्त्रोत को लौट जाती है। और अगर यह ऐसे ही चलता रहा, जीवन ऊर्जा फिर-फिर पीछे लौटती रहे, तुम वर्तुल में घुमते रहे। तो तुम जन्मों-जन्मों तक ऐसे ही घूमते रहोगे। तुम इस ढंग से अनंतकाल तक चलते रह सकते हो। यदि तुम अंतरिक्ष यात्रियों की तरह छलांग नहीं लेते। अंतरिक्ष यात्रियों की तरह तुम्हें छलांग लेना है और वर्तुल के पार निकल जाना है। तब पृथ्वी के गुरूत्वाकर्षण का पैटर्न टूट जाता है। यह तोड़ा जा सकता है।
यह कैसे तोड़ा जा सकता है। ये उसकी ही विधियां है। ये विधियां इस बात की फ्रिक करती है कि कैसे ऊर्जा ऊर्ध्व गति करे, नये केंद्रों तक पहुचे; कैसे तुम्हारे भीतर नई ऊर्जा का आविर्भाव हो और कैसे प्रत्येक गति के साथ वह तुम्हें नया आदमी बना दे। और जिस क्षण तुम्हारे सहस्त्रार से, कामवासना के विपरीत ध्रुव से तुम्हारी ऊर्जा मुक्त होती है। तुम आदमी नहीं रह गए; तब तुम इस धरती के न रहे,तब तुम भगवान हो गए।
जब हम कहते है कि कृष्ण या बुद्ध भगवान है तो उसका यही अर्थ है। उनके शरीर तो तुम्हारे जैसे है। उनके शरीर भी रूग्ण होंगे और मरेंगे। उनके शरीरों में सब कुछ वैसा ही होता है जैसे तुम्हारे शरीरों में होता है। सिर्फ एक चीज उनके शरीरों में नहीं होती जो तुम्हारे शरीर में होती है। उनकी ऊर्जा ने गुरूत्वाकर्षण के पैटर्न को तोड़ दिया है। लेकिन वह तुम नहीं देख सकते; वह तुम्हारी आंखों के लिए दृश्य नहीं है।
लेकिन कभी-कभी जब तुम किसी बुद्ध की सन्निधि में बैठते हो तो तुम यह अनुभव कर सकते हो। अचानक तुम्हारे भीतर ऊर्जा का ज्वार उठने लगता है और तुम्हारी ऊर्जा ऊपर की तरफ यात्रा करने लगती है। तभी तुम जानते हो कि कुछ घटित हुआ है। केवल बुद्ध के सत्संग में ही तुम्हारी ऊर्जा सहस्त्रार की तरफ गति करने लगती है। बुद्ध इतने शक्तिशाली है कि पृथ्वी की शक्ति भी उनसे कम पड़ जाती है। उस समय पृथ्वी की ऊर्जा तुम्हारी ऊर्जा को नीचे की तरफ नहीं खींच सकती है। जिन लोगों ने जीसस,बद्ध या कृष्ण की सन्निधि में इसका अनुभव लिया है, उन्होंने ही उन्हें भगवान कहा है। उनके पास ऊर्जा का एक भिन्न स्त्रोत है जो पृथ्वी से भी शक्तिशाली है।
इस पैटर्न को कैसे तोड़ा जा सकता है। यह विधि पैटर्न तोड़ने में बहुत सहयोगी है। लेकिन पहले कुछ बुनियादी बातें ख्याल में ले लो।
पहल बात कि अगर तुमने निरीक्षण किया होगा तो तुमने देखा होगा कि तुम्हारी काम ऊर्जा कल्पना के साथ गति करती है। सिर्फ कल्पना के द्वारा भी तुम्हारी काम-ऊर्जा सक्रिय हो जाती है। सच तो यह है कि कल्पना के बिना वह सक्रिय नहीं हो सकती हे। यही कारण है कि जब तुम किसी के प्रेम में होते हो तो काम-ऊर्जा बेहतर काम करती है। क्योंकि प्रेम के साथ कल्पना प्रवेश कर जाती है। अगर तुम प्रेम में नहीं हो तो बहुत कठिन है; वह काम नहीं करेगी।
इसीलिए पुराने दिनों में पुरूष-वेश्याएं नहीं होती थी। सिर्फ स्त्री वेश्याएं होती थी। पुरूष वेश्या के लिए काम के तल पर सक्रिय होना कठिन है। अगर वह प्रेम में नहीं है। और सिर्फ पैसे के लिए वह प्रेम कैसे कर सकता है। तुम किसी पुरूष को तुम्हारे साथ संभोग में उतरने के लिए पैसे दे सकती हो; लेकिन अगर उसे तुम्हारे प्रति भाव नहीं है। कल्पना नहीं है तो वह सक्रिय नहीं हो सकता। स्त्रियां यह कर सकती है। क्योंकि उनकी कामवासना निष्क्रिय है,सच तो यह है कि उन्हें कोई भी भाव न हो। उनके शरीर लाश की भांति पड़े रहे सकते है। वेश्या के साथ तुम एक जीवित शरीर के साथ नहीं, एक मृत शरीर या लाश के साथ संभोग करते हो। स्त्रियां आसानी से वेश्या हो सकती है। क्योंकि उनकी काम ऊर्जा निष्क्रिय है।
तो काम केंद्र कल्पना से काम करता है। इसीलिए स्वप्नों में तुम्हें इरेक्शन हो सकता हे। और वीर्यपात भी हो सकता है। वहां कुछ भी वास्तविक नहीं है। सब कुछ कल्पना का खेल है। फिर भी देखा गया है कि प्रत्येक पुरूष को, अगर वह स्वस्थ है, रात में कम से कम दस दफा इरेक्श्न होता है। मन की जरा सी गति के साथ, काम का जरा सा विचार उठने से ही इरेक्शन हो जाएगा।
तुम्हारे मन की अनेक शक्तियां है, अनेक क्षमताएं है; और उनमें से एक है संकल्प। लेकिन तुम संकल्प से काम कृत्य में नहीं उतर सकते; काम के लिए संकल्प नपुंसक है। अगर तुम संकल्प से किसी के साथ संभोग में उतरते की चेष्टा करोगे तो तुम्हें लगेगा कि तुम नापुंसग हो गए। कभी चेष्टा मत करो। कामवासना में संकल्प नहीं, कल्पना काम करती है। कल्पना करो, ओर तुम्हारा काम केंद्र सक्रिय हो जाएगा।
तुम्हारे मन की अनेक शक्तियां है, अनेक क्षमताएं है। और उनमें से एक है संकल्प। लेकिन मैं क्यों इस तथ्य पर इतना जौर दे रहा हूं, क्योंकि यदि कल्पना ऊर्जा को गतिमान करने में सहयोगी है तो तुम सिर्फ कल्पना के द्वारा उसे चाहो तो ऊपर ले जा सकते हो। और चाहों तो नीचे ला सकते हो। तुम अपने खून को कल्पना से गतिमान नहीं कर सकते; तुम शरीर में और कुछ कल्पना से नहीं कर सकते। लेकिन काम ऊर्जा कल्पना से गतिमान की जा सकती है। तुम उसकी दिशा बदल सकते हो।
यह सूत्र कहता है: ‘अपनी प्राण-शक्ति को प्रकाश किरण समझो।’ स्वयं को अपने होने को प्रकाश किरण समझो। योग ने तुम्हारे मेरूदंड को सात चक्रों में बांटा है। पहला काम केंद्र है। और अंतिम सहस्त्रार है। और इन दोनों के बीच पाँच चक्रा है। कोई-कोई साधना पद्धति मेरूदंड को नौ केंद्रों में बाँटती है। कोई तीन में ही और कोई चार में। यह विभाजन बहुत अर्थ नही रखता है। प्रयोग के लिए पाँच केंद्र प्रर्याप्त है। पहला काम-केंद्र है; दूसरा ठीक नाभि के पीछे है; तीसरा ह्रदय के पीछे है। चौथा केंद्र तुम्हारी दोनों भौंहों के बीच में है—ठीक ललाट के बीच में; और अंतिम केंद्र सहस्त्रार तुम्हारे सिर के शिखर पर है। ये पाँच पर्याप्त है।
यह सूत्र कहता है: ‘अपने को समझो,’ उसका अर्थ है कि भाव करो, कल्पना करो। आंखे बंद कर लो और भाव करो कि मैं बस प्रकाश हूं। यह भाव या कल्पना नहीं है। शुरू-शुरू में कल्पना ही है। लेकिन यथार्थ में भी ऐसा ही है। क्योंकि हरेक चीज प्रकाश से बनी है। अब विज्ञान कहता है कि सब कुछ विद्युत है। तंत्र ने तो सदा से कहा कि सबकुछ प्रकाश कणों से बना है और तुम भी प्रकाश कणों से ही बने हो। इसीलिए कुरान कहता है कि परमात्मा प्रकाश है। तुम प्रकाश हो।
तो पहले भाव करो मैं बस प्रकाश-किरण हूं। और फिर अपनी कल्पना को काम केंद्र के पास ले जाओ। अपने अवधान को वहां एकाग्र करो और भाव करो कि प्रकाश किरणें काम केंद्र से ऊपर उठ रही है। मानों काम केंद्र से ऊपर उठ रही है। मानो काम केंद्र प्रकाश का स्त्रोत बन गया है। और प्रकाश किरणें वहां से नाभि केंद्र की और ऊपर उठ रही है।
विभाजन इस लिए जरूरी है, क्योंकि तुम्हारे लिए काम केंद्र को सीधे सहस्त्रार से जोड़ना कठिन है। छोटे-छोटे विभाजन इसलिए उपयोगी है। यदि तुम सीधे सहस्त्रार से जुड़ सको तो किसी विभाजन की जरूरत नहीं हे। तुम काम केंद्र के ऊपर के सभी विभाजन गिरा दे सकते हो। और उर्जा जीवन शक्ति प्रकाश की भांति सीधे सहस्त्रार की और उठने लगेगी।
जब तुम अनुभव करो कि अब नाभि पर स्थित दूसरा केंद्र प्रकाश का स्त्रोत बन गया है। कि प्रकाश किरणें वहां आकर इकट्ठी होने लगी है। तब ह्रदय केंद्र कीओर गति करो। और ऊपर बढ़ो। और जैसे-जैसे प्रकाश ह्रदय केंद्र पर पहुंचता है, वैसे ही तुम्हारे ह्रदय केंद्र की धड़कने बदल जायेगी। तुम्हारी श्वास गहरी होने लगेगी, और तुम्हारे ह्रदय में गरमाहट पहुंचने लगेगी। तब उससे भी और आगे और ऊपर बढ़ो।
और जैसे-जैसे तुम्हें गरमाहट अनुभव होगी,वैसे-वैसे ही, तुम्हारे भीतर एक जीवंतता का उन्मेष होगा। एक आंतरिक प्रकाश का उदय होगा।
काम-ऊर्जा के दो हिस्से है। एक हिस्सा शारीरिक है और दूसरा मानसिक है। तुम्हारे शरीर में हरेक चीज के दो हिस्से है। तुम्हारे शरीर मन की भांति ही तुम्हारे भीतर प्रत्येक चीज के दो हिस्से है: एक भौतिक है और दूसरा अभौतिक। काम-ऊर्जा के भी दो हिस्से है। वीर्य उसका भौतिक हिस्सा है। वीर्य उपर नहीं उठ सकता। उसके लिए मार्ग नहीं है। इसीलिए पश्चिम के अनेक शरीर शास्त्री कहते है कि तंत्र और योग की साधना बकवास है; वे उन्हें इनकार ही करते है। काम-ऊर्जा ऊपर की और कैसे उठ सकती है। इसके लिए कोई मार्ग नहीं हे। और वह ऊपर नहीं उठ सकती।
वे शरीर शस्त्री सही है। और फिर भी गलत है। काम ऊर्जा का जो भौतिक हिस्सा है, वह जो वीर्य है,वह तो ऊपर नहीं उठ सकता;लेकिन वही सब कुछ नहीं है। सच तो यह है कि वीर्य काम-ऊर्जा का शरीर भर है। वह स्वयं काम ऊर्जा नहीं हे। काम-ऊर्जा तो उकसा अभौतिक हिस्सा है। और यह अभौतिक तत्व ऊपर उठ सकता है। और उसी अभौतिक ऊर्जा के लिए मेरूदंड मार्ग का काम करता है। मेरूदंड और उसके चक्र मार्ग का काम करते है। लेकिन उसका तो अनुभव से जानना होगा। और तुम्हारी संवेदनशीलता मर गई है।
जब कोई हाथ तुम्हें स्पर्श करता है तो हाथ नहीं , दबाव और गरमाहट अनुभव होती है। हाथ तो अनुभव भर है। वह बुद्धि है, भाव नहीं। गरमाहट और दबाव अनुभूतियां है। हमने अनुभूतियां बिलकुल खो दी है। तुम्हें फिर से उसे विकसित करना होगा। केवल तभी इन विधियों को प्रयोग में ला सकते हो। अन्यथा ये विधियां काम नहीं करेंगी। तुम केवल बुद्धि से सोचोगे कि मैं अनुभव करता हूं। और कुछ भी घटित नहीं होगा। यही कारण है कि लोग मेरे पास आते है और कहते है कि यह विधि बहुत महत्व पूर्ण है, लेकिन कुछ घटित नहीं होता।
उन्होंने प्रयोग तो किया है परंतु वह एक आयाम चुक गये। वे अनुभव का आयाम चुक गये। तो तुम्हें पहले इस आयाम को विकसित करना होगा। और उसके कुछ उपाय है जिन्हें तुम प्रयोग में ला सकते हो।
तुम एक काम करो, अगर तुम्हारे घर में कोई छोटा बच्चा है तो प्रतिदिन एक घंटा उसे बच्चे के पीछे-पीछे चलो। बुद्ध के पीछे चलने से उनके पीछे चलना बेहतर है। और कही ज्यादा तृप्ति दायी हो सकता है। बच्चे को अपने चारों हाथ-पाँव पर चलने को कहो, घुटनों के बल चलने को कहो, बच्चे के पीछे तुम भी चलो।
और पहली बार तुम्हें अपने में एक नव जीवन का उन्मेष होगा। तुम फिर बच्चे हो जाओगे। बच्चे को देखो। और उसके पीछे-पीछे चलो। बच्चा घर के कोने-कोने में जाएगा। वह घर की हरेक चीज को स्पर्श करेगा। न केवल स्पर्श करेगा। वह एक-एक चीज का स्वाद लेगा। वह एक-एक चीज को सूंघेगा। तुम बस उसका अनुकरण करो;वह जो भी करे तुम भी वही करो।
मनुष्य बच्चों से बहुत कुछ सीख सकता है। और देर-अबेर तुम्हारी सच्ची निर्दोषता प्रकट हो जाएगी। तुम भी कभी बच्चे थे। और तुम जानते हो कि बच्चा होना क्या है। सिर्फ उसका विस्मरण हो गया है।
तो अनुभूति के केंद्रों को फिर से विकसित करो। तो ही ये विधियां कारगर हो सकती है। अन्यथा तुम सोचते रहोगे कि ऊर्जा ऊपर उठ रही है। लेकिन उसकी कोई अनुभूति नहीं होगी। और अनुभूति के अभाव में कल्पना व्यर्थ है, बांझ है। अनुभूति भरा भाव ही परिणाम ला सकता है।
तुम और भी कई चीजें कर सकते हो। और उन्हें करने में कोई विशेष प्रयत्न भी नहीं है। जब तुम सोने जाओ तो विस्तर को, तकिए को महसूस, उसकी ठंडक को महसूस करो। तकिए को छुओ उसके साथ खेलो। अपनी आंखें बंद कर लो और सिर्फ एयरकंडीशनर की आवाज को सुनो। घड़ी की आवाज कोया चलती सड़क के शोरगुल को सुनो। कुछ भी सुनो उसे नाम मत दो कुछ कहो ही मत मन का उपयोग की मत करो। बस अनुभूति में जीओं।
सुबह जागने के पहले क्षण में, जब तुम्हें लगे कि नींद जा चुकी है तो तुरंत सोच-विचार मत करने लगो। कुछ क्षणों के लिए तुम फिर से बच्चे हो सकते हो। निर्दोष और ताजे हो सकते हो। तुरंत सोच-विचार में मत लग जाओ। यह मत सोचो कि क्या-क्या करना है। कब दफ्तर के लिए रवाना होना है, कौन सी गाड़ी पकड़नी है। सोच-विचार मत शुरू करो। उन मूढ़ताओं के लिए तुम्हें काफी समय मिलेगा। अभी रुको और अभी कुछ क्षणों के लिए सिर्फ ध्वनियों पर ध्यान दो। एक पक्षी गाता है। वृक्षों से हवाएँ गुजर रही है। कोई बच्चा रोता है या दूध देने वाला आया है। और पुकार रहा है। या वह पतीले में दूध डाल रहा है। जो भी हो रहा है उसे महसूस करो, उसके प्रति संवेदनशील बनो। खुले रहो। उसकी अनुभूति में डुबो। और तुम्हारी संवेदनशीलता बढ़ जायेगी।
जब स्नान करो तो उसे अपने पूरे शरीर पर अनुभव करो; पानी की प्रत्येक बूंद को अपने ऊपर गिरते हुए महसूस करो। उसके स्पर्श को, उसकी शीतलता और उष्णता को महसूस करो। पूरे दिन इसका प्रयोग करो; जब भी अवसर मिले प्रयोग करो। और सब जगह अवसर ही अवसर है। श्वास लेते हुए सिर्फ श्वास को अनुभव करो। भीतर जाती और बाहर आती श्वास को महसूस करो। केवल अनुभव करो1 अपने शरीर को ही महसूस करो। तुमने उसे भी नहीं अनुभव किया है।
हम अपने शरीर से भी इतने ही भयभीत है। कभी अपने शरीर को प्रेमपूर्वक स्पर्श नहीं करता है। क्या तुमने कभी अपने शरीर को ही प्रेम किया है। समूची सभ्यता इस बात से भयभीत है। कोई अपने को स्पर्श करे। क्योंकि बचपन में स्पर्श वर्जित रहा है। अपने को प्रेमपूर्वक स्पर्श करना हस्तमैथुन जैसा महसूस होता है। लेकिन अगर तुम अपने को ही प्रेम से स्पर्श नहीं कर सकते हो। तो तुम्हारा शरीर जड़ हो जाता है। मृत हो जाता है। वह दरअसल जड़ और मृत हो गया है।
अपनी आंखों को स्पर्श करो। तुम्हारी आंखों तुरंत ताजी और जीविंत हो उठेगी। अपने पूरी शरीर को महसूस करो; अपने प्रेमी के शरीर को महसूस करो; अपने मित्र के शरीर को महसूस करो। एक दूसरे को सहलाओ; एक दूसरे की मालिश करो। अपने मित्र के शरीर छुओ, उसकी छूआन को महसूस करो। तुम अधिक संवेदन शील हो जाओगे।
संवेदनशीलता और अनुभूति पैदा करो। तभी तुम इन विधियों का प्रयोग सरलता से कर सकते हो। और तब तुम्हें अपने भीतर जीवन ऊर्जा के ऊपर उठने का अनुभव होगा। इस ऊर्जा को बीच में मत छोड़ो। उसे सहस्त्रार तक जाने दो। स्मरण रहे कि जब भी तूम यह प्रयोग करो तो उसे बीच में मत छोड़ो; उसे पूरा करो। यह भी ध्यान रहे कि इस प्रयोग में कोई तुम्हें बाधा न पहुँचाए। अगर तुम इस ऊर्जा को कहीं बीच में छोड़ दोगे तो उससे तुम्हें हानि हो सकती है। इस ऊर्जा को मुक्त करना होगा। तो उसे सिर तक ले जाओ। और भाव करो कि तुम्हारा सिर एक द्वार बन गया है।
इस देश में हमने सहस्त्रार को हजार पंखुड़ियों वाले कमल के रूप में चित्रित किया है। सहस्त्रार का यही अर्थ है। तो धारणा करो कि हजार पंखुड़ियों वाला कमल खिल रहा है। और उसकी प्रत्येक पंखुडी से यह प्रकाश ऊर्जा ब्रह्मांड में फैल रही है। यह फिर एक अर्थों में संभोग है; लेकिन यह प्रकृति के साथ नहीं , परम के साथ संभोग है। और फिर एक आर्गाज्म घटित होता है।
आर्गाज्म दो प्रकार का होता है। एक सेक्सुअल और दूसरा स्प्रिचुअल सेक्सुअल आर्गाज्म निम्नतम केंद्र से आता है। और स्प्रिचुअल उच्चतम केंद्र से। उच्चतम केंद्र से तुम उच्चतम से मिलते हो और निम्नतम केंद्र से निम्नतम से।
साधारण संभोग में भी तुम यह प्रयोग कर सकते हो। दोनों लोग यह प्रयोग कर सकते हो। ऊर्जा को ऊर्ध्वगामी बनाओ। और तब संभोग तंत्र साधना बन जाता है। तब वह ध्यान बन जाता है।
लेकिन ऊर्जा को कही शरीर में, किसी बीच के केंद्र मत छोड़ो। कोई व्यक्ति बीच में आ सकता है जिसके साथ तुम्हें व्यावसायिक सरोकार हो, या कोई फोन आ जाए और तुम्हें प्रयोग को बीच में ही छोड़ना पड़े। इसलिए ऐसे समय में प्रयोग करो कि कोई तुम्हें बाधा न दे। और ऊर्जा को किसी केंद्र पर न छोड़ना पड़े। अन्यथा वह केंद्र जहां तुम ऊर्जा को छोड़ोगे धाव बन जाएगा और तुम्हें अनेक मानसिक रूग्णताओं का शिकार होना पड़ेगा।
तो सावधान रहो;अन्यथा यह प्रयोग मत करो। इस विधि के लिए नितांत एकांत आवश्यक है। बाधा रहितता आवश्यक है। और आवश्यक है कि तुम उसे पूरा करो। उर्जा को सिर तक जाना चाहिए। और वहीं से उसे मुक्त होना चाहिए।
तुम्हें अनेक अनुभव होंगे। जब तुम्हें लगेगा कि प्रकाश किरणें काम केंद्र से ऊपर उठने लगी है तो काम केंद्र पर इरेक्शन का ओर उत्तेजना का अनुभव होगा। अनेक लोग बहुत भयभीत और आतंकित स्थिति में मेरे पास आते है। और कहते है कि जब हम ध्यान करते है, जब हम ध्यान में गहरे जाते है। हमें इरेक्शन होता है। और वे चकित होकर पूछते है कि यह क्या है।
वे भयभीत हो जोत है क्योंकि वे सोचते है कि ध्यान मे कामुकता के लिए जगह नहीं होनी चाहिए। लेकिन तुम्हें जीवन के रहस्यों कापता नहीं है। यह अच्छा लक्षण है। यह बताता है। कि ऊर्जा उठ रही है। उसे गति की जरूरत है। तो आतंकित मत होओ। और यह मत सोचो कि कुछ गलत हो रहा है। यह शुभ लक्षण है। जब तुम ध्यान शुरू करते हो तो काम-केंद्र ज्यादा संवेदनशील, ज्यादा जीवंत, ज्यादा उत्तेजित हो जाएगा। वह बिलकुल शीतल हो जाएगा। अब उष्णता सिर में आ जाएगी।
और यह शारीरिक बात है। जब काम केंद्र-उत्तेजित होता है तो वह गरम हो जाता है। तुम उस गरमाहट को महसूस कर सकत हो। वह शारीरिक है। लेकिन जब ऊर्जा ऊपर उठती है तो काम केंद्र ठंडा होने लगता है। बहुत ठंडा होने लगता है। और उष्णता सिर पर पहुंच जाती है। तब तुम्हें सिर में चक्कर आने लगेगा। जब ऊर्जा सिर में पहुँचेगी तो तुम्हारा सिर घूमने लगेगा। कभी-कभी तुम्हें घबराहट भी होगी;क्योंकि पहली बार ऊर्जा सिर में पहुंची है। और तुम्हारा सिर उससे परिचित नहीं है। उसे ऊर्जा के साथ सामंजस्य बिठाना पड़ेगा।
सिर में पहुंच जाए तो तुम बेहोश भी हो सकते हो। लेकिन यह बेहोशी एक घंटे से ज्यादा देर तक नहीं रह सकती। घंटे भर के भीतर ऊर्जा अपने आप ही वापस लौट जाएगी। या मुक्त हो जायेगी। तुम उस अवस्था में कभी एक घंटे से ज्यादा देर नहीं रह सकते। मैं कहता तो हूं एक घंटा, लेकिन असल में यह समय अड़तालीस मिनट है। यह उससे ज्यादा नहीं हो सकता,लाखों वर्षों के प्रयोग के दौरान कभी ऐसा नहीं हुआ है।
तो डरो मत; तुम बेहोश भी हो जाओ तो ठीक है। उस बेहोशी के बाद तुम इतने ताजा अनुभव करोगे कि तुम्हें लगेगा। कि मैं पहली बार नींद से, गहनत्म नींद से गुजरा हुं। योग में इसका एक विशेष नाम है; उसे योग-तंद्रा कहा जाता हे। यह बहुत गहरी नींद है। इसमे तुम अपने गहनत्म केंद्र पर सरक जाते हो। लेकिन डरो मत।
और अगर तुम्हारा सिर गरम हो जाए तो यह भी शुभ लक्षण है। ऊर्जा को मुक्त होने दो। भाव करो कि तुम्हारा सिर कमल के फूल की भांति खिल रहा है। भाव करो कि ऊर्जा ब्रह्मांड में मुक्त हो रही है। फैलती जा रही है। और जैसे-जैसे ऊर्जा मुक्त होगी, तुम्हें शीतलता का अनुभव होगा। इस उष्णता के बाद जो शीतलता आती है। उसका तुम्हें कोई अनुभव नहीं है। लेकिन विधि को पूरा प्रयोग करो; उसे कभी आधा अधूरा मत छोड़ा।
ओशो
विज्ञान भैरव तंत्र, भाग-तीन
प्रवचन-47