अंधकार—संबंधी दूसरी विधि:
‘जब चंद्रमाहीन वर्षा की रात में उपलब्ध न हो तो आंखें बंद करो और अपने सामने अंधकार को देखो। फिर आंखे खोकर अंधकार को देखो। इस प्रकार दोष सदा के लिए विलीन हो जाते है।’
मैंने कहा कि अगर तुम आंखें बंद कर लोगे तो जो अंधकार मिलेगा वह झूठा अंधकार होगा। तो क्या किया जाए अगर चंद्रमाहीन रात, अंधेरी रात न हो। यदि चाँद हो और चाँदनी का प्रकाश हो तो क्या किया जाए? यह सूत्र उसकी कुंजी देता है।
‘जब चंद्रमाहीन वर्षा की रात उपलब्ध न हो तो आंखें बंद करो और अपने सामने अंधकार को देखो।’
आरंभ में यह अंधकार झूठा होगा। लेकिन तुम इसे सच्चा बना सकते हो, और यह इसे सच्चा बनाने का उपाय है।
‘फिर आंखें खोलकर अंधकार को देखो।’
पहले अपनी आंखें बंद करो और अंधकार को देखो। फिर आंखें खोलों और जिस अंधकार को तुमने भीतर देखा उसे बाहर देखो। अगर बाहर वह विलीन हो जाए तो उसका अर्थ है कि जो अंधकार तुम्हारे भीतर देखा था वह झूठा था।
यह कुछ ज्यादा कठिन है। पहली विधि में तुम असली अंधकार को भीतर लिए चलते हो। दूसरी विधि में तुम झूठे अंधकार का बाहर लाते हो। उसे बाहर लाते रहो। आंखें बंद करो अंधेरे को महसूस करो। आंखे खोलों और खुली आंखों से अंधेरे को बाहर फेंको। इस भांति तुम भीतर के झूठे अंधकार को बाहर फेंकते हो। उसे बाहर फेंकते रहो।
इसमें कम से कम तीन से छह सप्ताह का समय लगेगा। और तब एक दिन तुम अचानक भीतर के अंधकार को बाहर लाने में सफल हो जाओगे। और जि दिन तुम भीतर के अंधकार को बाहर ला सको,तुमने सच्चे आंतरिक अंधकार को पा लिया। सच्चे को ही बाहर लाया जा सकता है। झूठे को नहीं लाया जा सकता है।
यह एक बहुत अद्भुत अनुभव है। अगर तुम भीतरी अंधकार को बाहर ला सकते हो तो तुम इसे प्रकाशित कमरे में भी बाहर ला सकते हो। और अंधकार का टुकड़ा तुम्हारे सामने फैल जाएगा। यह बहुत अद्भुत अनुभव है, क्योंकि कमरा प्रकाशित है। सूर्य के प्रकाश में भी यह संभव है; अगर तुम आंतरिक अंधकार को पा सके तो तुम उसे बाहर भी ला सकते हो। तुम उसे देख सकते हो।
एक बार तुम जान गए कि ऐसा हो सकता है तो तुम भरी दोपहरी में भी अंधेरी से अंधेरी से अंधेरी रात जैसा अंधकार फैला सकते हो। सूर्य मौजूद है और तुम अंधकार को फैल सकते हो।
तिब्बत में इसी तरह की अनेक विधियां है। वे चीजों को भीतरी जगत से बाहरी जगत में ला सकते है। तुमने एक प्रसिद्ध विधि के संबंध में सूना होगा। वे इसे ताप-योग कहते है। सर्द रात में, बर्फ जैसी सर्द रात में बर्फ गिर रही है। एक तिब्बती लामा उस सर्द राम में जब चारों और बर्फ गिर रही है। और तापमान शून्य से नीचे हो, खुले आकाश के नीचे बैठता है और उसके शरीर से पसीना बहने लगता है।
शरीर शास्त्र के हिसाब से ये चमत्कार है। पसीना कैसे निकलने लगता है। वह भीतरी ताप को बाहर ला रहा है। वैसे ही आंतरिक शीतलता को भी बाहर लाया जा सकता है।
महावीर के जीवन में उल्लेख है; अब तक किसी ने भी उसको समझा नहीं है। जैन सोचते है कि महावीर कोई तप कर रहे थे। अब तक किसी ने भी उसको समझा नहीं है। कहां जाता है कि जब गर्मी होती है, सूर्य तपता है। तो महावीर सदा ऐसी जगह खड़े होते थे जहां कोई छाया, कोई वृक्ष नहीं होता, कुछ भी नहीं होता। गर्मी के दिनों में वे जलती धूप में खड़े होते। और सर्दी के दिनों में वे कोई शीतल स्थान, वृक्ष की छाया या नदी का किनारा चुनते थे। जहां ताप शून्य से नीचे हो। सर्दी के समय में वे ध्यान करने के लिए सर्द स्थान चुनते थे और गर्मी के दिनों में गर्म स्थान चुनते थे। लोग सोचते थे वे पागल हो गये है। और उनके अनुयायी सोचते है कि वे तप कर रहे थे।
ऐसी बात नहीं है। असल में महावीर इसी तरह की किसी आंतरिक विधि का प्रयोग कर रहे थे। जब गर्मी पड़ती थी तो वे भीतरी शीतलता को बाहर लाने का प्रयोग कर रहे थे। और यह विपरीत स्थिति में ही अनुभव किया जा सकता है। जब सर्दी पड़ती थी तो भीतरी ताप को बाहर लाने का प्रयत्न करते थे। और यह भी प्रतिकूल पृष्ठभूमि में ही महसूस हो सकता है। वे शरीर के शत्रु नही थे, वे शरीर के विरोध में नहीं थे, जैसा जैन समझते है।
जैन समझते है कि महावीर शरीर को मिटाने में लगे थे। क्योंकि अगर तुम अपने शरीर को मिटा सको तो तुम अपनी कामनाओं को भी मिटा सकते हो। यह निरी बकवास है। वे तप-वप नहीं कर रहे थे। वे बस आंतरिक को बाहर ला रहे थे। और वे आंतरिक द्वारा सुरक्षित थे। जैसे तिब्बती लामा गिरती बर्फ के नीचे ताप पैदा करके पसीना बहा सकते थे। वैसे ही महावीर जलती धूप में खड़े रहते और उन्हें पसीना नहीं आता था। वे अपनी आंतरिक शीतलता को बाहर ला रहे थे। वह आंतरिक शीतलता बाहर आकर उनके शरीर की रक्षा करती थी।
इस तरह तुम अपने आंतरिक अंधकार को बाहर ला सकते हो। और वह अनुभव बहुत शीतल होता है। अगर तुम उसे ला सके तो तुम उससे सुरक्षित रहोगे। कोई उत्तेजना कोई मनोवेग तुम्हें विचलित नहीं कर सकेगा।
तो प्रयोग करो। ये तीन बातें है। एक अंधकार में खुली आंखों से देखा और अंधकार को अपने भीतर प्रवेश करने दो। दूसरी अंधकार को अपने चारों और मां के गर्भ की तरह अनुभव करो, उसके साथ रहो ओर उसमें अपने को अधिकाधिक भूल जाओ। और तीसरी बात जहां भी जाओ अपने ह्रदय में अंधकार का एक टुकड़ा साथ लिए जाओ।
अगर तुम यह कर सके तो अंधकार प्रकाश बन जाएगा। तुम अंधकार के द्वारा बुद्धत्व को उपलब्ध हो जाओगे।
‘जब चंद्रमाहीन वर्षा की रता उपल्बध न हो तो आंखें बंद करो, और अपने सामने अंधकार को देखो, फिर आंखें खोल कर अंधकार को देखो।’
यह विधि है। पहले इसे भीतर अनुभव करो, गहन अनुभव करो, ताकि तुम उसे बाहर देख सको। फिर आंखों को अचानक खोल दो और बाहर अनुभव करो। इसमे थोड़ा समय जरूर लगेगा।
‘इस प्रकार दोष सदा के लिए विलीन हो जाते है।’
अगर तुम आंतरिक अंधकार को बाहर ला सके तो दोष सदा के लिए विलीन हो जाते है। क्योंकि आंतरिक अंधकार अनुभव में आ जाए तो तुम इतने शीतल, इतने शांत इतने अनुद्विग्न हो जाओगे। कि दोष तुम्हारे साथ नहीं रह सकेगा।
स्मरण रहे। दोष तभी तक रहते है जब तक तुम उत्तेजित होने की हालत में रहे हो। दोष अपने आप नहीं रहते; वे तुम्हारी उत्तेजना की क्षमता में ही रहते है। कोई व्यक्ति तुम्हारा अपमान करता है और तुम्हारे भीतर उस अपमान को पीने के लिए अंधकार नहीं है, तुम जल भूल जाते हो। क्रोधित हो जाते हो। और तब कुछ भी संभव है। तुम हिंसक हो सकते हो। तुम हत्या कर सकते हो। तुम वह सब कर सकते हो जो सिर्फ पागल आदमी कर सकता है। कुछ भी संभव है; अब तुम विक्षिप्त हो। फिर कोई व्यक्ति तुम्हारी प्रशंसा करता है और तुम दूसरे छोर पर विक्षिप्त हो। तुम्हारे चारों और स्थितियाँ है और तुम उन्हें चुपचाप आत्मसात करने में समर्थ नहीं हो।
किसी बुद्ध का अपमान करो। वे आत्मसात कर लेंगे। वे उसे पचा जाएंगे। कौन अपमान को पचा जात है? अंधकार का, शांति का आंतरिक पुंज उसे पचा लेता है। तुम कुछ भी विषाक्त फेंको, वह आत्मसात हो जाता है। उससे कोई प्रति क्रिया नही लौटती हे।
इसे प्रयोग करो। जब कोई तुम्हारा अपमान करे तो इतना ही स्मरण रखो। कि में अंधकार से भरा हूं। और सहसा तुम्हें प्रतीत होगा कि कोई प्रतिक्रिया नहीं उठती है। तुम रास्ते से गुजर रहे हो और एक सुंदर स्त्री या पुरूष दिखाई देता है और तुम उत्तेजित हो उठते हो। ख्याल करो कि मैं अंधकार से भरा हुआ हुं। और कामवासना विदा हो जाएगी। प्रयोग करके देखो। वह बिलकुल प्रायोगिक विधि है। इसमें विश्वास करने की जरूरत नहीं है।
जब भी तुम्हें मालूम पड़े कि मैं वासना से, या कामना से, या कामवासना से भरा हुआ हूं तो आंतरिक अंधकार को स्मरण करो। एक क्षण के लिए आंखें बंद करो। अंधकार की भावना करो और तुम देखोगें कि वासना विलीन हो गई है। कामना विदा हो गई है। आंतरिक अंधकार ने उसे पचा लिया। तुम एक असीम शून्य हो गए हो। जिसमें कोई भी चीज गिर कर फिर वापस लौट सकती है। तुम अब एक अतल खाई है।
इसलिए शिव कहते है: ‘इस प्रकार दोष सदा के लिए विलीन हो जाते है।’
ये विधियां आसान मालूम पड़ती है। वे आसान है। लेकिन क्योंकि वे सरल दिखती है, इसलिए उन्हें प्रयोग किए बगैर मत छोड़ दो। वे तुम्हारे अहंकार को चुनौती न भी दें तो भी प्रयोग करो। यह हमेशा होता है कि हम सरल चीजों को प्रयोग नहीं करते है। हम सोचते है कि वे इतनी सरल है कि सच नहीं हो सकती है। और सत्य सदा सरल होता है। वह कभी जटिल नहीं होता। उसे जटिल होने की जरूरत ही नहीं है। सिर्फ झूठ जटिल होता है। वह सरल नहीं हो सकता। अगर वह सरल हो तो उसका झूठ जाहिर हो जायेगा। और क्योंकि कोई चीज सरल मालूम पड़ती है। हम सोचते है कि इससे कुछ नहीं होगा। ऐसा नहीं है कि उससे कुछ नहीं होता है। लेकिन हमारा अहंकार तभी चुनौती पाता है जब कोई चीज बहुत कठिन हो।
तुम्हारे ही कारण अनेक संप्रदायों ने अपनी विधियों को जटिल बना दिया है। उसकी कोई जरूरत नहीं है। लेकिन वे उसमे अनावश्यक जटिलता और अवरोध निर्मित करते है। ताकि वे कठिन हो सकें। ताकि वे तुम्हें भाएं। उनसे तुम्हारे अहंकार को चुनौती मिले। अगर कोई चीज बहुत कठिन हो, जिसे बहुत थोड़े लोग करने में समर्थ हों, तो तुम्हें लगता है कि यह करने जैसा है। यह तुम्हें सिर्फ इसलिए करने जैसा लगता है। क्यों कि बहुत थोड़े लोग ही इसे कर सकते है।
ये विधियां एक दम सरल है। शिव तुम्हारा विचार नहीं करते है; वे विधि का वर्णन ठीक वैसा कर रहे है जैसा वह है। वे उसे सरलतम रूप में, कम से कम शब्दों में सूत्र के रूप में प्रकट कर रहे है। तो अपने अहंकार के लिए चुनौती मत खोजों। ये विधियां तुम्हें अहंकार की यात्रा पर ले जाने के लिए नहीं है। वे तुम्हारे अहंकार को कोई चुनौती नहीं देती। लेकिन यदि तुम इनका प्रयोग करोगे तो वे तुम्हें रूपांतरित कर देंगी। और चुनौती कोई अच्छी बात नहीं है। क्योंकि चुनौती से तुम ज्वर-ग्रस्त हो जाते हो। विक्षिप्त हो जाते हो।
ओशो
विज्ञान भैरव तंत्र, भाग-चार
प्रवचन-51