ध्वनि-संबंधी आठवीं विधि:
‘’अ और म के बिना ओम ध्वनि पर मन को एकाग्र करो।‘’
ओम ध्वनि पर एकाग्र करो; लेकिन इस ओम में म न रहें। तब सिर्फ उ बचता है। यह कठिन विधि है; लेकिन कुछ लोगों के लिए यह योग्य पड़ सकती है। खासकर जो लोग ध्वनि के साथ काम करते है। संगीतज्ञ, कवि, जिनके काम बहुत संवेदनशील है, उनके लिए यह विधि सहयोगी हो सकती है। लेकिन दूसरों के लिए जिनके कान संवेदनशील नहीं है, यह विधि कठिन पड़ेगी। क्योंकि यह बहुत सूक्ष्म है।
तो तुम्हें ओम का उच्चारण करना है और इस उच्चारण में तीनों ध्वनियों को—अ, उ और म को महसूस करना है। ओम का उच्चारण करो और उसमें तीन ध्वनियों को—अ, उ और म को अनुभव करो। वे तीनों ओम में समाहित है। बहुत संवेदनशील काम ही इन तीनों ध्वनियों को अलग-अलग सुन सकते है। वे अलग-अलग है, यद्यपि बहुत करीब-करीब भी है। अगर तुम उन्हें अलग-अलग नहीं सुन सकते तो यह विधि तुम्हारे लिए नहीं है। तुम्हारे कानों को उनके लिए प्रशिक्षित करना होगा।
जापान में, विशेषकर झेन परंपरा में, वे पहले कानों को प्रशिक्षित करते है। कानों के प्रशिक्षण के उपाय है। बाहर हवा चल रही है; उसकी एक ध्वनि है। गुरु शिष्य से कहता है कि इस ध्वनि पर अपने कान को एकाग्र करो; उसके सूक्ष्म भेदों को, उसकी बदलाहटों को समझो; देखो कि कब ध्वनि कुपित है और कब उन्मत्त, कब ध्वनि करणावान है और कब प्रेमपूर्ण हे। कब वह शक्तिशाली है। और कब नाजुक है। ध्वनि की बारीकियों को अनुभव करो। वृक्षों से होकर हवा गुजर रही है। उस महसूस करो। नदी बह रही है; उसके सूक्ष्म भेदों को पहिचानों।
और महीनों साधक नदी के किनारे बैठकर उसके कलकल स्वर को सुनता रहता है। नदी का स्वर भी भिन्न-भिन्न होता है। वह सतत बदलता रहता है। बरसात में नदी पूर पर होती है; बहुत जीवंत होती है, उमड़ती होती है। उस समय उसके स्वर भिन्न होते है। और गर्मी में नदी ना कुछ होती है। उसका कलकल भी समाप्त हो जाता है। लेकिन अगर तुम सुनना चाहो तो वह सूक्ष्म स्वर भी सूना जा सकता है। साल भर नदी बदलती रहती है और साधक को सजग रहना पड़ता है।
हरमन हेस के उपन्यास सिद्धार्थ एक माझी के साथ रहता है। नदी है, माझी है और सिद्धार्थ है; उनके अतिरिक्त और कोई नहीं है। और माझी बहुत शांत व्यक्ति है। वह आजीवन नदी के साथ रहता है; वह इतना शांत हो गया है कि कभी-कभार ही बोलता है। और जब भी सिद्धार्थ अकेलापन महसूस करता है, माझी उससे कहता है कि तुम जाओ नदी के किनारे और उसकी कल-कल ध्वनि को सुनो। मनुष्य की बकवास कि बजाएं नदी को सुनना बेहतर है।
और सिद्धार्थ धीरे-धीरे नदी के साथ लयबद्ध हो जाता है। और तब उसे नदी की भाव दशा का बोध होने लगता है। नदी की भाव दशा बदलती रहती है। कभी वह मैत्रीपूर्ण है और कभी नहीं; कभी वह गाती है और कभी रोती-चीखती है; कभी वह हंसती है और कभी उसे उदासी घेर लेती है। और सिद्धार्थ उसके सूक्ष्म से सूक्ष्म भेदों को पकड़ने लगता है। उसके कान नदी के साथ लयबद्ध हो जाते है।
तो हो सकता है, आरंभ में तुम्हें यह विधि कठिन मालूम पड़े। लेकिन प्रयोग करो; ओम का उच्चार करो और उच्चार करते हुए ओम की ध्वनि को अनुभव करो। इसके तीन, ध्वनियों सम्मिलित; ओम तीन स्वरों का समन्वय है। और जब तुम इन तीन स्वरों को अलग-अलग अनुभव कर लो तो उनमें से अ और म को छोड़ दो। तब तुम ओम नहीं कह सकोगे; क्योंकि अ निकल गया, म भी निकल गया। तब तुम ओम नहीं कह सकोगे; क्योंकि अ निकल गया , म भी निकल गया। तब सिर्फ उ बच रहेगा। क्या होगा?
मंत्र असली चीज नहीं है। असली चीज ओम नहीं है और न उसका छोडना है। असली चीज तुम्हारी संवेदनशीलता है। पहले तुम तीन ध्वनियों के प्रति संवेदनशील होते हो, जो कठिन काम है। और जब तुम इतने संवेदनशील हो जाते हो कि तुम उनमें से दो स्वरों को, अ और म को छोड़ सकते हो तो सिर्फ बीच का स्वर बचता है। और इस प्रयत्न में तुम्हारा मन विसर्जित हो जाता है। तुम उसमे इतने तल्लीन हो जाओगे, उसके प्रति इतने अवधान से भरे जाओगे, तुम इतने संवेदनशील हो जाओगे कि विचार विसर्जित हो जाएंगे। और अगर तुम सोच-विचार करते हो तो तुम स्वरों के प्रति संवेदनशील नहीं हो सकते।
यह तुम्हें तुम्हारे सिर से बारह निकालने का परोक्ष उपाय है। बहुत सारे उपाय प्रयोग में लाए गए है। और वे बहुत सरल प्रतीत होते है। तुम्हें आश्चर्य होता है कि इन सरल उपायों से क्या हो सकता है। लेकिन चमत्कार घटित होता है; क्योंकि वे उपाय परोक्ष है। तुम्हारे मन को बहुत सूक्ष्म चीज पर स्थिर किया जा सकता है। इस प्रयत्न में सोच-विचार नहीं चल सकता है। तुम्हारा मन खो जाएगा। और तब किसी दिन अचानक तुम्हें इस बात का पता चलेगा। और तुम चकित रह जाओगे कि क्या हुआ।
झेन में कोआन का, पहेली का प्रयोग होता है। एक बहुत प्रचलित कोआन है जो नए साधकों को दिया जाता है। उन्हें कहा जाता है कि एक हाथ की ताली सुनो। अब ताली तो दो हाथों से बजती है। लेकिन उन्हें कहा जाता है कि एक हाथ से बजने वाली ताली को सुनो।
किसी झेन गुरु की सेवा में एक लड़का रहता था। वह देखता था कि अनेक लोग आते है, गुरु के पैर पर सिर रखते है और कहते है कि हमे बताएं कि हम किस पर ध्यान करें। गुरु उन्हें कोई कोआन दिया करता था। वह लड़का गुरु के छोटे-मोटे काम कर दिया करता था। वह उसकी सेवा में था। उसकी उम्र नौ साल की रही होगी। रोज-रोज साधकों को आते-जाते देखकर वह भी एक दिन बहुत गंभीरता के साथ गुरु के निकट गया और उसके चरणों में सिर रखकर निवेदन किया कि मुझे भी ध्यान करने के लिए कोई कोआन दें।
गुरु हंसा। लेकिन लड़का गंभीर बना रहा। तो गुरु ने उसे कहा कि ठीक है, एक हाथ की ताली सुनने की चेष्टा करो। और जब सुनाई पड़ जाए तो आकर मुझे बताना।
लड़के ने बहुत प्रयत्न किया। रात-रात भर उसे नींद नहीं आई। कुछ दिनों बात वह आकर कहता है मैंने सून ली। वह वृक्षों से गुजरती हवा है। लेकिन गुरु ने पूछा; इसमें हाथ कहा है? जाओ और फिर प्रयत्न करो। ऐसे लड़का रोज आत ही रहा। वह कोई ध्वनि खोज लेता और गुरु को बताता। लेकिन हर बार गुरु कहता कि यह भी नहीं है; और प्रयत्न करो।
फिर एक दिन लड़का गुरु के पास नहीं आया। गुरु ने उसकी बहुत प्रतीक्षा की; लेकिन वह नहीं आया। तब उसने अपने दूसरे शिष्यों से कहा कि जाकर पता करो कि क्या हुआ। गुरु ने कहा कि मालूम होता है कि उसने एक हाथ की ताली सुन ली है। शिष्य गए। लड़का एक वृक्ष के नीचे समाधिस्थ बैठा था—मानों एक नवजात बुद्ध बैठा हो।
उन्होंने लौटकर गुरु को खबर दी। उन्होंने कहा कि हमें उसे हिलाने में डर लगा; वह तो नवजात बुद्ध मालूम होता है। मालूम पड़ता है कि उसने ताली सुन ली। तब गुरु स्वयं आया, उसने लड़के के चरणों में सिर रखा और पूछा: ‘’क्या तुमने सुना?’’ मालूम होता है कि तुमने सुन लिया। लड़के ने स्वीकृति से सिर हिलाते हुए कहा: ‘’हां, लेकिन वह तो मौन है।
इस लड़के ने कैसे सुना? उसकी संवेदनशीलता विकसित हुई। उसने प्रत्येक ध्वनि को सुनने की चेष्टा की और उसने बहुत अवधान से सुना। उसका अवधान विकसित हुआ। उसकी नींद जाती रही। वह रात भर जाग कर सुनता कि एक हाथ की ताली क्या है। वह तुम्हारे जैसा बुद्धिमान नहीं था। उसने यह सोचा ही नहीं कि एक हाथ की ताली नहीं हो सकती।
वही पहेली तुम्हें दी जाए तो तुम प्रयोग करने वाले नहीं हो। तुम कहोगे कि यह मूढता है; एक हाथ की ताली नहीं हो सकती। लेकिन उस लड़के ने प्रयोग क्या। उसने सोचा कि जब गुरु ने कहा है तो उसमें जरूर कुछ होगा; उसमे श्रम किया। वह सरल था। जब भी उसे लगता है। कि कोई नई चीज है तो वह दौड़ाकर गुरु के पास जाता। इस ढंग से उसकी संवेदनशीलता विकसित होती गई। वह और-और सजग और बोध पूर्ण होता गया। वह एकाग्र हो गया। वह लड़का खोज में लगा था। इसलिए उसका मन विसर्जित हो गया। गुरु ने उससे कहा था कि अगर तुम सोच विचार करते रहोगे। तो तुम चूक जाओगे। कभी-कभी ऐसी ध्वनि होती है कि जो एक हाथ की होती है। इसलिए सजग रहना ताकि चूक न जाओ। और उसने प्रयत्न किया।
एक हाथ की ताली नहीं होती है। लेकिन यह तो संवेदनशीलता को, बोध को पैदा करने का एक परोक्ष उपाय था। और एक दिन अचानक सब कुछ विलीन हो गया। वह इतना अवधान पूर्ण हो गया कि अवधान ही रह गया। वह इतना संवेदनशील हो गया कि संवेदनशीलता ही रह गई। वह इतना बोधपूर्ण हो गया कि बोध ही रह गया। वह सिर्फ बोधपूर्ण था; किसी चीज के प्रति बोधपूर्ण नहीं। और तब उसने कहा: ‘’मैंने सुन लिया। लेकिन यह तो मौन है, शुन्य है।‘’
लेकिन इसके लिए तुम्हें सतत और होश पूर्ण होने का अभ्यास करना होगा।
‘’अ और म के बिना ओम ध्वनि पर मन को एकाग्र करो।‘’
यह विधि है जो तुम्हें ध्वनि के सूक्ष्म भेदों के प्रति नाजुक भेदों के प्रति सजग बनाती है। इसका प्रयोग करते-करते तुम ओम को भूल जाओगे। न सिर्फ अ गिरेगा। न सिर्फ म गिरेगा। बल्कि किसी दिन तुम भी अचानक खो जाओगे। तब शून्य का, मौन का जन्म होगा। और तब तुम भी किसी वृक्ष के नीचे बैठे नवजात बुद्ध हो जाओगे।
ओशो
विज्ञान भैरव तंत्र, भाग—2
प्रवचन—29