आत्म-स्मरण की तीसरी विधि—
‘’जब नींद अभी नहीं आयी हो और बाह्य जागरण विदा हो गया हो, उस मध्य बिंदू पर बोधपूर्ण रहने से आत्मा प्रकाशित होती है।‘’
तुम्हारी चेतना में कई मोड़ आते है, मोड़ के बिंदु आते है। इन बिंदुओं पर तुम अन्य समयों की तुलना में अपने केंद्र के ज्यादा करीब होते हो। तुम कार चलाते समय गियर बदलते हो और गियर बदलते हुए तुम न्यूट्रल से गुजरते हो। यह न्यूट्रल गियर निकटतम है।
सुबह जब नींद विदा हो रही होती है और तुम जागने लगते हो। लेकिन अभी जागे नहीं हो, ठीक उस मध्य बिंदु पर तुम न्यूट्रल गियर में होते हो। यह एक बिंदु है जहां तुम न सोए हो और न जागे हो, ठीक मध्य में हो; तब तुम न्यूट्रल गियर में हो। नींद से जागरण में आते समय तुम्हारी चेतना की पूरी व्यवस्था बदल जाती है। वह एक व्यवस्था से दूसरी व्यवस्था में छलांग लेती है। और इन दोनों के बीच में कोई व्यवस्था नहीं होती, एक अंतराल होता है। इस अंतराल में तुम्हें अपनी आत्मा की एक झलक मिल सकती है।
वही बात फिर रात में घटित होती है जब तुम अपनी जाग्रत व्यवस्था से नींद की व्यवस्था में, चेतन से अचेतन में छलांग लेते हो। तब फिर एक क्षण के लिए कोई व्यवस्था नहीं होती है। तुम पर किसी व्यवस्था की पकड़ नहीं होती है। क्योंकि तब तुम एक से दूसरी व्यवस्था में छलांग लेते हो। इन दोनों के मध्य में अगर तुम सजग रह सकें, बोधपूर्ण रह सके, इन दोनों के मध्य में अगर तुम अपना स्मरण रख सके, तो तुम्हें अपने सच्चे स्वरूप की झलक मिल जाएगी।
तो इसके लिए क्या करें? नींद में उतरने के पहले विश्राम पूर्ण होओ और आंखे बंद कर लो। कमरे में अँधेरा कर लो। आंखे बंद कर लो। और बस प्रतीक्षा करो। नींद आ रही है। बस प्रतीक्ष करो। कुछ मत करो, बस प्रतीक्षा करो। तुम्हारा शरीर शिथिल हो रहा है। तुम्हारा शरीर भारी हो रहा है। बस शिथिलता को, भारीपन को महसूस करो। नींद की अपनी ही व्यवस्था है, वह काम करने लगती है। तुम्हारी जाग्रत चेतना विलीन हो रही है। इसे स्मरण रखो, क्योंकि वह क्षण बहुत सूक्ष्म है। वह क्षण परमाणु सा छोटा होता है। इस चूक गये तो चूक गये। वह कोई बड़ा अंतराल नहीं है। बहुत छोटा है। यह क्षण भर का अंतराल है, जिसमें तुम जागरण से नींद में प्रवेश कर जाते हो। तो बस पूरी सजगता से प्रतीक्षा करो। प्रतीक्षा किए जाओ।
इसमे थोड़ा समय लगेगा। कम से कम तीन महीने लगते है। तब एक दिन तुम्हें उस क्षण की झलक मिलेगी। जो ठीक बीच में है। तो जल्दी मत करो। यह अभी ही नहीं होगा, यह आज रात ही नहीं होगा। लेकिन तुम्हें शुरू करना है और महीनों प्रतीक्षा करनी है। साधारण: तीन महीने में किसी दिन यह घटित होगा। यह रोज ही घटित हो रहा है। लेकिन तुम्हारी सजगता और अंतराल का मिलन आयोजित नहीं किसा जा सकता। वह घटित हो ही रहा है। तुम प्रतीक्षा किए जाओ और किसी दिन वह घटित होगा। किसी दिन तुम्हें अचानक यह बोध होगा कि मैं न जागा हूं और न सोया हूं।
यह एक बहुत विचित्र अनुभव है, तुम उससे भयभीत भी हो सकते हो। अब तक तुमने दो ही अवस्थाएं जानी है। तुम्हें जागने का पता है, तुम्हें अपनी नींद का पता है। लेकिन तुम्हें यह नी पता है कि तुम्हारे भीतर एक तीसरा बिंदू भी है। जब तुम न जागे हो और सोये हो। इस बिंदू के प्रथम दर्शन पर तुम भयभीत भी हो सकते हो। आंतरिक भी हो सकते हो। भयभीत मत होओ। आतंरिक मत होओ। जो भी चीज इतनी नयी होगी। अनजानी होगी। वह जरूर भयभीत करेगी। क्योंकि यह क्षण जब तुम्हें इसका बार-बार अनुभव होगा। तुम्हें एक और एहसास देगा कि तुम न जीवित हो और नक मृत, कि तुम न यह हो और न वह। यह अतल खाई जैसा है।
नींद और जागरण की व्यवस्थाएं दो पहाड़ियों की भांति है, तुम एक से दूसरे पर छलांग लगाते हो। लेकिन यदि तुम उसके मध्य में ठहर जाओ तो तुम अतल खाई में गिर जाओगे। और इस खाई का कहीं अंत नहीं है। तुम गिरते जाओगे। गिरते ही जाओगे।
सूफियों ने इस विधि का उपयोग किया है। लेकिन जब वे किसी साधक को यक विधि देते है तो सुरक्षा के लिए वे साथ ही एक और विधि भी देते है। सूफी साधना में इस विधि के दिये जाने से पहले दूसरी विधि यह दि जाती है। कि तुम बंद आंखों से कल्पना करो, कि तुम अतल कुएं में गिर रहे हो। और गिरते ही जाओ। गिरते ही जाओ। सतत गिरते ही जाओ। यह कुआं अतल है, तुम कहीं रूक नहीं सकते। यह गिरना कही रूकने वाला नहीं है। तुम रूक सकते हो, आंखें खोलकर कह सकते हो। कि अब और नहीं। लेकिन यह गिरना अपने आप में कही रूकने वाला नहीं है। अगर तुम गिरते रहे तो कुआं अतल है। और वह और-और अंधकारपूर्ण होता जाएगा।
सूफी साधना में यह अभ्यास, अतल कुएं में गिरने का अभ्यास पहले कराया जाता है। और यह अच्छा है। उपयोगी है। अगर तुमने इसका अभया किया और अगर तुमने इसके सौंदर्य को समझा, इसकी शांति को जाना, अनुभव किया, तो तुम जितना चाहे गहरे कुएं में उतर सकते हो। ज्यादा शांत हो सकते हो। संसार बहुत पीछे छूट जायेगा। और तुम्हें लगेगा कि मैं बहुत दूर, बहुत दूर, निकल आया हूं। अंधकार के साथ शांति बढ़ती है। और क्योंकि नीचे गहरे में कहीं कोई तल नहीं है। इसलिए भय पकड़ सकता है। लेकिन तुम्हें मालूम है कि यह सिर्फ कल्पना है, इसलिए तुम इसे जारी रख सकते हो।
इस अभ्यास के द्वारा तुम इस विधि के लिए तैयार होते हो। और फिर जब तुम जागरण और नींद के अंतराल के कुएं में गिरते हो तो यह कल्पना नहीं है, यह यथार्थ है। और यह कुआं भी अतल है। अनंत है। इसीलिए बुद्ध ने इसे शून्य कहां है, उसका अंत नहीं है। और तुम एक बार इसे जान गए तो तुम भी अनंत हो गये।
‘’जब नींद अभी नहीं आयी हो और बाह्य जागरण विदा हो गया हो, उस मध्य बिंदु पर बोधपूर्ण रहने से आत्मा प्रकाशित होती है।‘’
तब तुम जानते हो कि मैं कौन हूं, मेरा सच्चा स्वभाव क्या है, मेरा प्रमाणिक अस्तित्व क्या है। जागते हुए झूठे हो। और यह तुम भली भांति जानते हो। जब तुम जागे हुए हो, तुम झूठे बने रहते हो। तुम उस समय मुस्कराते हो, जब कि आंसू बहाना ज्यादा सच होता है। तुम्हारे आंसू भी भरोसे योग्य नहीं है। वे भी दिखाऊ हो सकते है। नकली हो सकते है। होने चाहिए इसलिए हो सकते है। तुम्हारी मुस्कुराहट झूठी है। जो लोग चेहरे पढ़ना जानते है वे कह सकते है कि यह मुस्कुराहट रंग-रोगन से ज्यादा नहीं है। भीतर उसकी कोई जड़ें नहीं है। यह मुस्कुराहट बस तुम्हारे चेहरे पर है, होठो पर है। ऊपरी है। यह तुम्हारे प्राणों से नहीं उठी है। उपर से ओढ़ी गई है। यह थोपी गई है।
तुम जो कहते हो, जो भी करते हो, सब नकली है। यह जरूरी नहीं है कि तुम यह नकली व्यापार जान बूझकर करते हो। यह जरूरी नहीं है उसके प्रति तुम सर्वथा अंजान भी हो सकते हो। तुम अंजान हो। अन्यथा इस नकली मूढ़ता को सतत जारी रखना बहुत कठिन है। यह व्यापार स्वचालित है। यह झूठ चलता रहता है जब तुम जागे हुए हो और यह झूठ तब भी चलता रहा है जब तुम सोए हुए हो—लेकिन तब और ढंग से चलता है। तुम्हारे सपने प्रतीकात्मक है, सच नहीं। हैरानी की बात है कि तुम अपने सपनों मे भी सच्चे नहीं हो, तुम अपने सपनों में भी भयभीत हो। और तुम प्रतीक निर्मित करते हो।
अब मनोविश्लेषक तुम्हारे सपनों का विश्लेषण करता रहता है। यही उसका धंधा है। और यह एक भारी धंधा बन गया है। क्योंकि तुम खुद अपने सपनों का विश्लेषण नहीं कर सकते हो। सपने प्रतीकात्मक वे सच नहीं है। वे सिर्फ प्रतीकों के द्वारा कुछ कहते है। अगर तुम अपनी मां की हत्या करना चाहते हो, उसके छुटकारा चाहते हो। तो तुम सपने में उसकी हत्या नहीं करोगे। तुम उसकी जगह किसी ऐसे व्यक्ति की हत्या कर दोगे, जो देखने में तुम्हारी मां जैसा होगा। तुम अपनी चाचा या किसी और की हत्या कर दोगे। तुम अपने सपने में भी प्रमाणिक नहीं हो सकते। यह कारण है कि मनोविश्लेषण की जरूरत पड़ती हे। एक पेशेवर व्यक्ति की जरूरत पड़ती है। जो तुम्हारे सपनों की व्याख्या कर सके। लेकिन तुम सपने को भी एक ढंग से रख सकते हो कि मनोविश्लेषण भी धोखा खा जाए।
तुम्हारे सपने भी सर्वथा झूठे है। लेकिन अगर तुम जागते हुए सच्चे रह सको तो तुम्हारे सपने सच हो सकते है, तब वे प्रतीकात्मक नहीं होंगे। तब अगर तुम अपनी मां की हत्या करना चाहोगे तो सपने में तुम अपनी मां की ही हत्या करोगे। किसी और स्त्री की नहीं। और फिर व्याख्या करने वालों की जरूरत नहीं होगी। तुम्हें खुद पता होगा की तुम्हारे सपनों का अर्थ क्या है। लेकिन हम इतने झूठे है, धोखेबाज है, कि सपने के एकांत में भी संसार से, समाज से डरते है।
लेकिन यह सिखावन क्यों? गहरे में यह संभावना है कि प्रत्येक व्यक्ति अनिवार्यतः: अपनी मां का विरोध में चला जाए, क्योंकि मां ने तुम्हें सिर्फ जन्म ही नहीं दिया, उसने तुम्हें झूठ और नकली बनने के लिए मजबूर किया है। तुम जो भी हो, अपनी मां के बनाए हुए हो। अगर तुम एक नरक हो तो इसमें तुम्हारी मां का बड़ा हाथ है। सबसे बड़ा हाथ है। अगर तुम दुःख में हो तो उस दुःख में कहीं न कहीं तुम्हारी मां मौजूद है, क्योंकि मां ने तुम्हें जन्म दिया, उसने तुम्हें पाल-पोसकर बड़ा किया। या कहें कि उसने तुम्हें पाल-पोसकर नकली बनाया। उसने तुम्हें तुम्हारी प्रामाणिकता से हटा दिया। तुम्हारा पहला झूठ तुम्हारे और तुम्हारी मां के बीच घटित हुआ है।
जब बच्चे ने बोलना भी नहीं सीखा है, उसके पास भाषा भी नहीं है। तब भी वह झूठ बोल सकता है। देर अबेर वह जान जाता है कि उसके अनेक भाव मां को पसंद नहीं है। मां का चेहरा, उसकी आंखें, उसका व्यवहार, उसकी मुद्रा, सब बात देते है कि उसकी कुछ चीजें पसंद नहीं है। स्वीकृत नहीं है। और तब बच्चा दमन करने लगता है; उसे लगता है कि कुछ गलत है। अभी उसके पास भाषा नहीं है, उसका मन सक्रिय नहीं है। लेकिन उकसा सारा शरीर दमन करने लग जाता है। और फिर उसे पता चलता है कि कभी-कभी कोई बात उसकी मां के द्वारा सराही जाती है। और यह बच्चा मां पर निर्भर है, उसका जीवन ही मां पर निर्भर है। अगर मां उसे छोड़ दे तो वह नहीं जी सकता। उसका पूरा जीवन मां पर केंद्रित है।
इसलिए मां का सब कुछ—उसका व्यवहार, उसकी बात, उसका इशारा—बच्चे के लिए महत्वपूर्ण हो जाता है। अगर बच्चा मुस्कराता है और तब मां उसे प्रेम देती हे। लाड़-दुलार करती है। दूध पिलाती है। छाती से लगती है। तो समझो की बच्चा राजनीति सीखने लगा। वह तब भी मुस्कुराएगा जब उसके भी मुस्कुराहट नहीं होगी। क्योंकि अब वह जानता है कि ऐसा करके वह मां को खुश कर सकता है। अब वह झूठी मुस्कुराहट मुस्कुराएगा। अब एक झूठा व्यक्ति पैदा हो गया। अब एक राजनीतिज्ञ अस्तित्व में आया। अब वह जानता है कि कैसे झूठ हुआ जाए।
और यह सब वह अपनी मां के सत्संग से सीखता है। संसार में वह उसका पहला संबंध है। इसलिए जब उसे अपने दुखों का पता चलता है। अपने नरक का बोध होता है, उलझनें घेरेंगी, तब उसे यह भी पता चलेगा कि इस सब में कही न कहीं उसकी मां छिपी है। और पूरी संभावना यह है कि तुम अपनी मां के प्रति शत्रुता अनुभव करते हो। यही कारण है कि सभी संस्कृतियों में जोर दिया जाता है कि मां ही हत्या जघन्य पाप है। विचार में भी, सपने में भी, तुम मां की हत्या न कर सको।
ये दो तुम्हारे झूठे चेहरे है। एक चेहरा तुम्हारे जागरण में प्रकट होता है। और दूसरा तुम्हारी नींद में। इन दो झूठे चेहरों के बीच एक छोटा सा द्वार है, एक छोटा सा अंतराल है। इस अंतराल में तुम्हें अपने मौलिक चेहरे की झलक मिल सकती है—उस मौलिक चेहरे की जो तब था जब तुम मां से नहीं संबंधित हुए थे। और मां के जरिए समाज से नहीं जुड़े थे। जब तुम अपने साथ अकेले थे जब तुम थे—तुम यह वह नहीं थे। जब कोई विभाजन नहीं था। केवल सत्य था; कुछ असत्य नहीं था। इन दो व्यवस्थाओं के बीच तुम्हें अपनी उस सच्चे चेहरे की झलक मिल सकती है।
साधारणत: हम अपने सपनों की चिंता नहीं लेते है, हम सिर्फ जागते समय की चिंता लेते है। लेकिन मनोविश्लेषण तुम्हारे सपनों की ज्यादा चिंता लेते है। वह तुम्हारे जागरण की चिंता नहीं लेता है। क्योंकि वह समझता है कि जागे हुए तुम ज्यादा झूठे होते हो। तुम्हारे सपनों सक कुछ पकड़ा जा सकता है। जब तुम सोए होते हो तो कम सजग होते हो। तब तुम कुछ आरोपित नहीं करते, तब तुम तोड़ते-मरोड़ते नहीं। उस अवस्था में कुछ सत्य पकड़ा जा सकता है।
तुम जागते हुए ब्रह्मचारी हो सकते हो, साधु हो सकते हो। लेकिन तुमने अपनी कामवासना को दबा रखा है। वह दबी हुई कामवासना तुम्हारे स्वप्नों में अभिव्यक्त होगी; तुम्हारे सपने कामुक होंगे। ऐसा साधु खोजना कठिन है जो कामुक सपने ने देखता हो। यह असंभव है। तुम्हें कामुक सपनों के बिना अपराधी तो मिल जायेंगे। लेकिन ऐसा धार्मिक आदमी खोजना मुशिकल होगा। जो कामुक सपने न देखता हो। एक व्यभिचारी कामुक सपनों के बिना हो सकता है। क्योंकि तुम जागते हुए जिसे दबाओगें वह तुम्हारे सपनों में उभरकर आएगा। वह तुम्हारे सपनों को प्रभावित करेगा।
मनोचिकित्सक तुम्हारे जागरण की फिक्र नहीं करते है, क्योंकि वे जानते है कि वह बिलकुल झूठ है। अगर कुछ सच्चा, कुछ यथार्थ देखना हो तो वह केवल सपनों में देखा जा सकता है।
लेकिन तंत्र कहता है कि सपने भी उतने सच नहीं है। हालांकि जागरण की तुलना में वे ज्यादा सच है—यह पहेली सी मालूम पड़ती है। क्योंकि हम सपनों को असत्य मानते है—वे जागरण की घड़ियों की बजाय ज्यादा सच है। क्योंकि सपनों में तुम अपने पहरे पर कम होते हो। नींद में सेंसर सोया रहता है। और दमित चीजें ऊपर आ सकती है। अपने को अभिव्यक्त कर सकती है। हां यह अभिव्यक्ति प्रतीकात्मक होगी; पर प्रतीकों को समझा जा सकता है।
सारी दुनियां में मनुष्य के प्रतीक समान है। जागते हुए तुम भिन्न भाषा बोल सकते हो। लेकिन सपने में तुम वही भाषा बोलते हो जो सारे लोग बोलते है। सारी दुनिया की स्वप्न भाषा एक है। अगर कामवासना दबाई गई है तो दुनियाभर में एक ही तरह का प्रतीक उसे अभिव्यक्त करेंगे। अगर भोजन की इच्छा को दबाया गया है, भूख को दमित किया गया है तो उसे भी सपने में सर्वत्र एक ही तरह के प्रतीक अभिव्यक्त करेंगे। स्वप्न—भाषा है।
लेकिन प्रतीकों के कारण ही स्वप्नों के साथ एक दूसरी कठिनाई है। फ्रायड उसका अर्थ एक ढंग से कर सकता है। जुंग उनका अर्थ दूसरे ढंग से कर सकता है। और एडलर उनका अर्थ और भी भिन्न ढंग से कर सकता है। अगर सौ मनोविश्लेषक तुम्हारा विश्लेषण करें तो वे सौ व्याख्याएं करेंगे। और तुम पहले से ज्यादा उलझन में पड़ जाओगे। एक ही चीज की सौ व्याख्याएं तुम्हें और भी भ्रांत कर देंगी।
तंत्र कहता है, तुम न जागते हुए सच हो और न सोते हुए सच हो, तुम इन दो अवस्थाओं के बीच में कहीं सच हो। इसलिए न जागरण की फिक्र तरो और नींद की और न स्वप्न की। सिर्फ अंतराल की फिक्र करो। उस अंतराल के प्रति जागों। एक से दूसरी अवस्था में गुजरते हुए इस अंतराल का दर्शन करो। और एक बार तुम जान जाते हो कि यह अंतराल कब आता है। तुम उसके मालिक हो जाते हो। तब तुम्हें कुंजी मिल गई, तुम किसी भी वक्त उस अंतराल को खोलकर उसमे प्रवेश कर सकते हो। तब होने का एक भिन्न आयाम, एक नया आयाम खुलता है।
ओशो
विज्ञान भैरव तंत्र, भाग-3
प्रवचन—35