संभोग : समय-शून्यता की झलक—2
और इसलिए आदमी दस-पाँच वर्षों में युद्ध की प्रतीक्षा करने लगता है, दंगों की प्रतीक्षा करने लगता है। और हिन्दू-मुसलमान का बहाना मिल जाये तो हिन्दू-मुसलमान सही। अगर हिन्दू-मुसलमान का न मिले तो गुजराती-मराठी भी काम करेगा। अगर गुजराती-मराठी न सही तो हिन्दी बोलने वाला और गेर हिन्दी बोलने वाला भी चलेगा।
कोई भी बहाना चाहिए आदमी को, उसके भीतर के पशु को छुटटी चाहिए। वह घबरा जाता है। पशु भीतर बंद रहते-रहते। वह कहता है, मुझे प्रकट होने दो। और आदमी के भीतर का पशु तब तक नहीं मिटता है, जब तक पशुता का जो सहज मार्ग हे, उसके उपर मनुष्य की चेतना न उठे। पशुता का सहज मार्ग—हमारी उर्जा हमारी शक्ति का एक ही द्वार है बहने का—वह है सेक्स। और वह द्वार बंद कर दें तो कठिनाई खड़ी हो जाती है। उस द्वार को बंद करने के पहले नये ,द्वार का उदघाटन होना जरूरी है—जीवन चेतना नयी दिशा में प्रवाहित हो सके।
लेकिन यह हो सकता है। यह आज तक किया नहीं गया। नहीं किया गया। क्योंकि दमन सरल मालूम पड़ता हे। दबा देना किसी बात को आसान है। बदलना, बदलने कि विधि और साधना की जरूरत है। इसलिए हमने सरल मार्ग का उपयोग किया कि दबा दो अपने भीतर।
लेकिन हम यह भूल गये कि दबाने से कोई चीज नष्ट नहीं होती है, दबाने से और बलशाली हो जाती है। और हम यह भूल गये कि दबाने से हमारा आकर्षण और गहरा होता है। जिसे हम दबाते है वह हमारी चेतना की और गहरी पर्तों में प्रविष्ट हो जाता है। हम उसे दिन में दबा लेते है, वह सपने में हमारी आंखों में झुलने लगता है। हम उसे रोजमर्रा दबा लेते है वह हमारे भी प्रतीक्षा करता है कि कब मौका मिल जाये,कब मैं फूट पडूं, निकल पडूं। जिसे हम दबाते है उससे हम मुक्त नहीं होते। हम और गहरे अर्थों में, और गहराइयों में, और अचेतन में और अनकांशस तक उसकी जड़ें पहुंच जाती है। और वह हमें जकड़ लेता है।
आदमी सेक्स को दबाने के कारण ही बंध गया और जकड़ गया। और यही वजह है कि पशुओं की तो सेक्स की कोई अवधि होती है। कोई पीरियड होता है। वर्ष में; आदमी की कोई अवधि न रही। कोई पीरियड न रहा। आदमी चौबीस घंटे बाहर महीने सेक्सुअल है। सारे जानवरों में कोई जानवर ऐसा नहीं है। जो बारह महीने, चौबीस घंटे कामुकता से भरा हुआ हो। उसका वक्त है, उसकी ऋतु है; वह आती है और चली जाती है। और फिर उसका स्मरण भी खो देता है।
आदमी को क्या हो गया है? आदमी ने दबाया जिस चीज को वह फैल कर उसके चौबीस घंटे बारह महीने के जीवन पर फैल गई है।
कभी आपने इस पर विचार क्या कि कोई पशु हर स्थिति में हर समय कामुक नहीं होता। लेकिन आदमी हर वक्त हर स्थिति में हर समय कामुक है—जो कामुकता उबल रही है। जैसे कामुकता ही सब कुछ हो। वह कैसे हो गया? यह कैसे हो गया? यह दुर्घटना कैसे संभव हुई है? पृथ्वी पर सिर्फ मनुष्य के साथ हुआ है, और किसी जानवर के साथ नहीं—क्यों?
एक ही कारण है सिर्फ आदमी ने दबाने की कोशिश की है। और जिसे दबाया, वह जहर की तरह सब तरफ फैल गई। और दबाने के लिए हमें क्या करना पड़ा? दबाने के लिए हमें निंदा करनी पड़ी,दबाने के लिए हमें कहना पडा की सेक्स नरक है। हमें कहना पडा जो सेक्स में है वह गर्हित है, निंदित है। हमें ये सारी गालियां खोजनी पड़ी, तभी हम दबाने में सफल हो सके। और हमें ख्याल भी नहीं कि इन निंदा ओर गलियों के कारण हमारा सारा जीवन जहर से भर गया है।
नीत्से ने एक वचन कहा है, जो बहुत अर्थपूर्ण है। उसने कहा है कि धर्मों ने जहर खिलाकर सेक्स को मार डालने की कोशिश की है। सेक्स मरा तो नहीं, सिर्फ जहरीला और निंदित हो गया है। मर भी जाता तो ठीक था। वह मरा नहीं। लेकिन ओर गड़बड़ हो गयी बात। वह जहरीला होकर जिंदा है। यह जो सेक्सुअलिटी है, यह जहरीला सेक्स है।
सेक्स तो पशुओं भी है, काम तो पशुओं में भी है। क्योंकि काम जीवन की ऊर्जा है। लेकिन सेक्सुअलिटी, कामुकता सिर्फ मनुष्य में है। कामुकता पशुओं में नहीं है। पशुओं की आंखों में देखें, वहां कामुकता दिखाई नहीं पड़ेगी। आदमी की आंखों में झांके, वहां एक कामुकता का रस झलकता हुआ दिखायी पड़ेगा। इसलिए पशु आज भी एक तरह से सुन्दर है। लेकिन दमन करने वाले पागलों की कोई सीमा नहीं है कि वे कहां तक बढ़ जायेंगे।
मैंने कल आपको कहा था कि अगर हमें दुनिया को सेक्स से मुक्त करना है, तो बच्चे और बच्ची यों को एक दूसरे के निकट लाना होगा। इसके पहले कि उनमें सेक्स जागे। चौदह साल के पहले वे एक दूसरे के शरीर से इतने स्पष्ट रूप से परिचित हो लें कि वह आकांशा विलीन हो जाये।
लेकिन अमरीका में अभी-अभी एक नया आंदोलन चला है। और वह नया आंदोलन वहां के बहुत धार्मिक लोग चला रहे है। शायद आपको पता हो। वह नया आंदोलन बड़ा अद्भत है। वह आंदोलन यह है कि सड़कों पर गाय, भेस, घोड़े, कुत्ते, बिल्ली को बिना कपड़ों के न निकाला जाये। उनको भी कपड़े पहने चाहिए। क्योंकि नंगे पशुओं को देख कर बच्चें बिगड़ सकते है। यह बड़े मजे कि बात है। नंगे पशुओं को देख कर बच्चें बिगड़ सकते है। अमरीका के कुछ नीति शास्त्री इसके बाबत आंदोलन और संगठन ओर संस्थाएं बना रहे है। आदमी को बचाने की इतनी कोशिश चल रही है। और कोशिश बचाने की जो करने वाले लोग है, वे ही आदमी को नष्ट कर रहे है।
लेकिन वह जो भयभीत लोग है, वे जो डरे हुए लोग है। वे भय और डर के कारण सब कुछ कर रहे है आज तक। और उनके सब करने से आदमी रोज नीचे उतरता जा रहा है। जरूरत तो यह है कि आदमी भी कसी दिन इतना सरल हो कि नग्न खड़ा हो सके—निर्दोष और आनंद से भरा हुआ।
जरूरत तो यह है कि—जैसे महावीर जैसा व्यक्ति नग्न खड़ा हो गया। लोग कहते है कि उन्होंने कपड़े छोड़े कपड़ों का त्याग किया। मैं कहता हूं, न कपड़े छोड़े न कपड़ों का त्याग किया। चित इतना निर्दोष हो गया होगा। इतना इनोसेंस, जैसे एक छोटे बच्चे का, तो वे नग्न खड़े हो गये होंगे। क्योंकि ढांकने को जब कुछ भी नहीं रह जाता तो आदमी नग्न हो सकता है।
जब तक ढाँकने को कुछ है हमारे भीतर,तब तक आदमी आपने को छिपायेंगा। जब ढांकने को कुछ भी नहीं है, तो नग्न हो सकता है।
चाहिए तो एक ऐसी पृथ्वी कि आदमी भी इतना सरल होगा कि नग्न होने में भी उसे कोई पश्चाताप कोई पीड़ा न होगी। नग्न होने में उसे कोई अपराध न होगा। आज तो हम कपड़े पहन कार भी अपराधी मालूम होते है। हम कपड़े पहनकर भी नंगे है। और ऐसे लोग भी रहे है। जो नग्न होकर भी नग्न नहीं थे।
नंगापन मन की एक वृति है।
सरलता, निर्दोष चित—फिर नग्नता भी सार्थक हो जाती है। अर्थ पूर्ण हो जाती है। वह भी एक सौंदर्य ले लेती है।
लेकिन अब तक आदमी को जहर पिलाया गया है। और जहर का परिणाम यह हुआ है कि हमारा सारा जीवन एक कोने से लेकर दूसरे कोने तक विषाक्त हो गया है।
स्त्रीयों को हम कहते है, पति को परमात्मा समझना। और उन स्त्रियों को बचपन से सिखाया गया है कि सेक्स पाप है। वे कल विवाहित होंगी। वे उस पति को कैसे परमात्मा मान सकेंगी, जो उन्हें सेक्स में और नरक में ले जा रहा है। एक तरफ हम सिखाते है पति परमात्मा है और पत्नी का अनुभव कहता है कि यह पहला पापी है जो मुझे नरक में घसीट रहा है।
एक बहिन ने मुझे आकर कहा, पिछली मीटिंग में जब मैं बोला, भारतीय विद्या भवन में तो एक बहन मेरे पास उसी दिन आयी और उसने कहा कि मैं……मैं बहुत गुस्से में हूं? मैं बहुत क्रोध में हूं। सेक्स तो बड़ी घृणित चीज है। सेक्स तो पाप है। और आपने सेक्स की इतनी बातें क्यों कि। मैं तो घृणा करती हूं सेक्स से।
अब यह पत्नी है इसका पति है, इसके बच्चें है। बच्चियां है। और यह पत्नी सेक्स से घृणा करती है। यह पति को कैसे प्रेम कर सकेगी। जो इसे सेक्स में लिए जा रहा है। यह उन बच्चों को कैसे प्रेम कर सकेगी। जो सेक्स से पैदा हुए है। इसका प्रेम जहरीला हो गया है। इसके प्रेम में जहर छिपा है। पति और उसके बीच एक बुनियादी दीवाल खड़ी हो गई है। बच्चों और इसके बीच एक बुनियादी दिवाल खड़ी हो गई है क्योंकि वे सेक्स से पैदा हुए हे। ये बच्चें पाप से आये है। क्योंकि यह सेक्स की दीवाल और सेक्स की कंडेमनेशन की वृति बीच में खड़ी है। यह पति और मेरे बीच पाप का संबंध है, और जिनके साथ पाप को संबंध हो, उसके प्रति मैत्रीपूर्ण कैसे हो सकते है? पाप के प्रति हम मैत्री पूर्ण हो सकते है।
सारी दुनियां का गृहस्थ जीवन नष्ट किया है, सेक्स को गाली देने वाले,निंदा करने वाले लोगों ने। और वे इसे नष्ट करके जो दुष् परिणाम लाये है वह यह नहीं है कि सेक्स से लोग मुक्त हो गये है। जो पति अपनी पत्नी और अपने बीच एक दीवाल पाता है। पाप की, वह पत्नी से कभी भी तृप्ति अनुभव नहीं कर पाता। तो आसपास की स्त्रियों को खोजता है, वेश्याओं को खोजता है। अगर पत्नी से उसे तृप्ति मिल गयी होती तो शायद इस जगत की सारी स्त्रीयां उसके लिए मां और बहन हो जातीं। लेकिन पत्नी से भी तृप्ति न मिलने के कारण सारी स्त्रीयां उसे पोटेंशियलिटी औरतों की तरह पोटेंशियल पत्निओं की तरह मालूम पड़ती है। जिनको पत्नी में बदला जा सकता है।
यह स्वाभाविक है यह होने वाला था। यह होने वाला था, क्योंकि जहां तृप्ति मिल सकती थी। वहां जहर है। वहां पाप है। और तृप्ति नहीं मिलती। और चह चारों तरफ भटकता है और खोजता है। और क्या-क्या ईजादें करता है खोजकर आदमी। अगर इन सारी ईजादों को हम सोचने बैठे तो घबरा जायेंगे कि आदमी ने क्या-क्या ईजादें की है। लेकिन एक बुनियादी बात पर खयाल नहीं किया कि वह जो प्रेम का कुआं था, वह जो काम का कुआं का, वह जहरीला हो गया है।
और जब पत्नी और पति के बीच जहर का भाव हो, घबराहट का भाव हो, पाप का भाव हो तो फिर यह पाप की भावना रूपांतरण नहीं करने देगी। अन्यथा मेरी समझ यह है कि एक पति और पत्नी अगर एक दूसरे के प्रति समझ पूर्वक प्रेम से भरे हुए आनंद से भरे हुए और सेक्स के प्रति बिना निंदा के सेक्स को समझने की चेष्टा करेंगे तो आज नहीं कल, उनके बीच का संबंध रूपांतरित हो जाने वाला है। यह हो सकता है कि कल वहीं पत्नी मां जैसी दिखाई पड़ने लगे।
गांधी जी 1930 के करीब श्री लंका गये थे। उनके साथ कस्तूरबा साथ थी। संयोजकों ने समझा कि शायद गांधी की मां साथ आयी हुई है। क्योंकि गाँधीजी कस्तूरबा को खुद भी बा ही कहते थे। लोगों ने समझा शायद उनकी मां होगी। संयोजकों ने परिचय देते हुए कहा कि गांधी जी आये है और बड़ सौभाग्य की बात है कि उनकी मां भी साथ आयी हुई है। वह उनके बगल में बैठी है। गांधी जी के सैक्रेटरी तो घबरा गये कि यह तो भूल हमारी है, हमें बताना था कि साथ में कौन है। लेकिन अब तो बड़ी देर हो चुकी थी। गांधी तो मंच पर जाकर बैठ भी गये थे और बोलना शुरू कर दिया था। सैक्रेटरी घबराये हुए है कि गांधी पीछे क्या कहेंगे। उन्होंने कल्पना भी नहीं की थी कि गांधी नाराज नहीं होंगे, क्योंकि ऐसे पुरूष बहुत कम है, जो पत्नी को मां बनाने में समर्थ हो जाते है।
लेकिन गांधी जी ने कहां, की सौभाग्य की बात है, जिन मित्र ने मेरा परिचय दिया है। उन्होंने भूल से एक सच्ची बात कह दी। कस्तूरबा कुछ वर्षों से मेरी मां हो गयी है। कभी वह मेरी पत्नी थी। लेकिन अब वह मेरी मां है।
इस बात की संभावना है कि अगर पत्नी और पति काम को, संभोग को समझने की चेष्टा करे तो एक दूसरे के मित्र बन सकते है और दूसरे के काम के रूपांतरण में सहयोगी और साथी हो सकते है।
और जिस दिन पति और पत्नी अपने आपस के संभोग के संबंध को रूपांतरित करने में सफल हो जाते है उस दिन उनके जीवन में पहली दफा एक दूसरे के प्रति अनुग्रह और ग्रेटीट्यूड का भाव पैदा होता हे, उसके पहले नहीं। उसके पहले वे एक दूसरे के प्रति क्रोध से भरे रहते है, उसके पहले वे एक दूसरे के बुनियादी शत्रु बने रहते है। उसके पहले उनके बीच एक संघर्ष हे, मैत्री नहीं।
( क्रमश: अगले अंक में ………………देखें)
ओशो
संभोग से समाधि की ओर,
प्रवचन–3
गोवा लिया टैंक, बम्बई,
29—सितम्बर—1968,