तंत्र-सूत्र—विधि-47 (ओशो)
ध्वनि-संबंधी अंतिम विधि: ‘’अपने नाम की ध्वनि में प्रवेश करो, और उस ध्वनि के द्वारा सभी ध्वनियों में।‘’ मंत्र की तरह नाम का उपयोग बहुत आसानी से किया जा सकता है। यह बहुत सहयोगी होगा, क्योंकि तुम्हारा नाम तुम्हारे अचेतन में बहुत गहरे उतर चुका है। दूसरी कोई भी चीज अचेतन की उस गहराई को […]
तंत्र-सूत्र—विधि-46 (ओशो)
ध्वनि-संबंधी दसवीं विधि: ‘’कानों को दबाकर और गुदा को सिकोड़कर बंद करो, और ध्वनि में प्रवेश करो।‘’ हम अपने शरीर से भी परिचित नहीं है। हम नहीं जानते कि शरीर कैसे काम करता है और उकसा ताओ क्या है। ढंग क्या है। मार्ग क्या है। लेकिन अगर तुम निरीक्षण करो तो आसानी से उसे जान […]
तंत्र-सूत्र—विधि-45 (ओशो)
ध्वनि-संबंधी नौवीं विधि: ‘’अ: से अंत होने वाले किसी शब्द का उच्चार चुपचाप करो। और तब हकार में अनायास सहजता को उपलब्ध होओ।‘’ ‘’अ: से अंत होने वाले किसी शब्द का उच्चार चुपचाप करो।‘’ कोई भी शब्द जिसका अंत अ: से होता है, उसका उच्चार चुपचाप करो। शब्द के अंत में अ: के होने पर […]
तंत्र-सूत्र—विधि-44 (ओशो)
ध्वनि-संबंधी आठवीं विधि: ‘’अ और म के बिना ओम ध्वनि पर मन को एकाग्र करो।‘’ ओम ध्वनि पर एकाग्र करो; लेकिन इस ओम में म न रहें। तब सिर्फ उ बचता है। यह कठिन विधि है; लेकिन कुछ लोगों के लिए यह योग्य पड़ सकती है। खासकर जो लोग ध्वनि के साथ काम करते है। […]
तंत्र-सूत्र—विधि-43 (ओशो)
ध्वनि-संबंधी सातवीं विधि: ‘’मुंह को थोड़ा-सा खुला रखते हुए मन को जीभ के बीच में स्थिर करो। अथवा जब श्वास चुपचाप भीतर आए, हकार ध्वनि को अनुभव करो।‘’ मन को शरीर में कहीं भी स्थिर किया जा सकता है। सामान्यत: हमने उसे सिर में स्थिर कर रखा है; लेकिन उसे कहीं भी स्थिर किया जा […]
तंत्र-सूत्र—विधि-42 (ओशो)
ध्वनि-संबंधी छठवीं विधि: ‘’किसी ध्वनि का उच्चार ऐसे करो कि वह सुनाई दे; फिर उस उच्चार को मंद से मंदतर किए जाओ—जैसे-जैसे भाव मौन लयबद्धता में लीन होता जाए।‘’ कोई भी ध्वनि काम देगी; लेकिन अगर तुम्हारी कोई प्रिय ध्वनि हो तो वह बेहतर होगी। क्योंकि तुम्हारी प्रिय ध्वनि मात्र ध्वनि नहीं रहती; जब तुम […]