तंत्र-सूत्र—विधि-41 (ओशो)

ध्‍वनि-संबंधी पाँचवीं विधि: ‘’तार वाले वाद्यों को सुनते हुए उनकी संयुक्‍त केंद्रित ध्‍वनि को सुनो; इस प्रकार सर्वव्‍यापकता को उपलब्‍ध होओ। वही चीज। ‘’तार वाले वाद्यों को सुनते हुए उनकी संयुक्‍त केंद्रीय ध्‍वनि को सुनो; इस प्रकार सर्वव्‍यापकता को उपलब्‍ध होओ।‘’ तुम किसी वाद्य को सुन रहे हो—सितार या किसी अनय वाद्य को। उसमें कई […]

तंत्र-सूत्र—विधि-40 (ओशो)

ध्‍वनि-संबंधी चौथी विधि: ‘’किसी भी अक्षर के उच्‍चारण के आरंभ में और उसके क्रमिक परिष्‍कार में, निर्ध्‍वनि में जागों।‘’ कभी-कभी गुरूओं ने इस विधि का खूब उपयोग किया है। और उनके अपने नए-नए ढंग है। उदाहरण के लिए, अगर तुम किसी झेन गुरु के झोंपड़े पर जाओ तो वह अचानक एक चीख मारेगा और उससे […]

तंत्र-सूत्र—विधि-39 (ओशो)

ध्‍वनि-संबंधी तीसरी विधि: ‘’ओम जैसी किसी ध्‍वनि का मंद-मंद उच्‍चरण करो। जैस-जैसे ध्‍वनि पूर्णध्‍वनि में प्रवेश करती है। वैसे-वैसे तुम भी।‘’ ‘’ओम जैसी किसी ध्‍वनि का मंद-मंद उच्‍चारण करो।‘’ उदाहरण के लिए ओम को लो। यह एक आधारभूत ध्‍वनि है। उ, इ और म, ये तीन ध्‍वनियां ओम में सम्‍मिलित है। ये तीनों बुनियादी ध्‍वनियां […]

तंत्र-सूत्र—विधि-38 (ओशो)

ध्‍वनि-संबंधी दूसरी विधि: ध्‍वनि के केंद्र में स्‍नान करो, मानो किसी जलप्रपात की अखंड ध्‍वनि में स्‍नान कर रहे हो। या कानों में अंगुलि डालकर नांदों के नाद, अनाहत को सुनो। इस विधि का प्रयोग कई ढंग से क्या जा सकता है। एक ढंग यह है कि कहीं भी बैठकर इसे शुरू कर दो। घ्वनियां […]

तंत्र-सूत्र—विधि-37 (ओशो)

ध्‍वनि-संबंधी पहली विधि: ‘’हे देवी, बोध के मधु-भरे दृष्‍टि पथ में संस्‍कृत वर्णमाला के अक्षरों की कल्‍पना करो—पहले अक्षरों की भांति, फिर सूक्ष्‍मतर ध्‍वनि की भांति, और फिर सूक्ष्‍मतर भाव की भांति। और तब, उन्‍हें छोड़कर मुक्‍त होओ।‘’ शब्‍द ध्‍वनि है। विचार एक अनुक्रम में, तर्कयुक्‍त अनुक्रम में बंधे, एक खास ढांचे में बंधे शब्‍द […]

तंत्र-सूत्र—विधि-36 (ओशो)

देखने के संबंध में सातवीं विधि: ‘’किसी विषय को देखो, फिर धीरे-धीरे उससे अपनी दृष्‍टि हटा लो, और फिर धीरे-धीरे उससे अपने विचार हटा लो। तब।‘’ ‘’किसी विषय को देखो……….।‘’ किसी फूल को देखो। लेकिन याद रहे कि इस देखने का अर्थ क्‍या है। केवल देखो, विचार मत करो। मुझे यह बार-बार कहने की जरूरत […]

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