तंत्र सूत्र—विधि -66 (ओशो)
‘मित्र और अजनबी के प्रति, मान और अपमान में, असमता और समभाव रखो।’ ‘असमता के बीच समभाव रखो।’ यह आधार है। तुम्हारे भीतर क्या घटित हो रहा है। दो चीजें घटित हो रही है। तुम्हारे भीतर कोई चीज निरंतर वैसी ही रहती है; वह कभी नहीं बदलती। शायद तुमने इसका निरीक्षण न किया हो। शायद […]
तंत्र सूत्र—विधि -65 (ओशो)
‘’अन्य देशनाओं के लिए जो शुद्धता है वह हमारे लिए अशुद्धता ही है। वस्तुत: किसी को भी शुद्ध या अशुद्ध की तरह मत जानों।‘’ यह तंत्र का एक बुनियादी संदेश है। तुम्हारे लिए यह बड़ी कठिन धारणा होगी; क्योंकि यह बिलकुल ही गैर-नैतिक धारणा है। मैं इसे अनैतिक नहीं कहूंगा। क्योंकि तंत्र को नीति-अनीति से […]
तंत्र सूत्र—विधि -64 (ओशो)
‘’छींक के आरंभ में, भय में, खाई-खड्ड के कगार पर, युद्ध से भागने पर, अत्यंत कुतूहल में, भूख के आरंभ में और भूख के अंत में, सतत बोध रखो।‘’ यह विधि देखने में बहुत सरल मालूम पड़ती है। छींक के आरंभ में, भय में, चिंता में, भूख के पहले या भूख के अंत में सतत […]
तंत्र सूत्र—विधि -63 (ओशो)
‘’जब किसी इंद्रिय-विषय के द्वारा स्पष्ट बोध हो, उसी बोध में स्थित होओ।‘’ तुम अपनी आँख के द्वारा देखते हो। ध्यान रहे, तुम अपनी आँख के द्वारा देखते हो। आंखे नहीं देख सकती। उनके द्वारा तुम देखते हो। द्रष्टा पीछे छिपा है। भीतर छिपा है; आंखें बस द्वार है। झरोखे है। लेकिन हम सदा सोचते […]
तंत्र सूत्र—विधि -62 (ओशो)
‘’जहां कहीं तुम्हारा मन भटकता है, भीतर या बाहर, उसी स्थान पर, यह।‘’ मन एक द्वार है—यही मन जहां कही भी भटकता है, जो कुछ भी सोचता है। मनन करता है। सपने देखता है। यही मन और यही क्षण द्वार है। यही एक अति क्रांतिकारी विधि है, क्योंकि हम कभी नहीं सोचते कि साधारण मन […]
तंत्र सूत्र—विधि -61 (ओशो)
‘’जैसे जल से लहरें उठती है और अग्नि से लपटें, वैसे ही सर्वव्यापक हम से लहराता है।‘’ पहले तो यह समझने की कोशिश करो लहर क्या है, और तब तुम समझ सकते हो कि कैसे यह चेतना की लहर तुम्हें ध्यान में ले जाने में सहयोगी हो सकती है। तुम सागर में उठती लहरों को […]