केंद्रित होने की चौथी विधि:
‘’हे भगवती, जब इंद्रियाँ ह्रदय में विलीन हों, कमल के केंद्र पर पहुँचों।‘’
प्रत्येक विधि किसी मन-विशेष के लिए उपयोगी है। जि विधि की अभी हम चर्चा कर रहे थे—तीसरी विधि, सिर के द्वारों को बंद करने वाली विधि—उसका उपयोग अनेक लोग कर सकते है। वह बहुत सरल है और बहुत खतरनाक नहीं है। उसे तुम आसानी से काम में ला सकते हो।
यह भी जरूरी नहीं है कि द्वारों को हाथ से बंद करो; बंद करना भी जरूरी है। इसलिए कानों के लिए डाट और आंखों के लिए पट्टी से काम चल जाएगा असली बात यह कि कुछ क्षणों के लिए ये कुछ सेंकेंड के लिए सिर के द्वारों को पूरी तरह से बंद कर लो।
इसका प्रयोग करो, अभ्यास करो। अचानक करने से ही यह कारगर है, अचानक में ही राज छिपा है। बिस्तर में पड़े-पड़े अचानक सभी द्वारों को कुछ सेकेंड के लिए बंद कर लो। और तब भीतर देखो क्या होता है।
जब तुम्हारा दम घुटने लगे, क्योंकि श्वास भी बंद हो जाएगी, तब भी इसे जारी रखे और तब तक जारी रखो जब तक कि असह्य न हो जाये। और जब असह्य हो जाएगा, तब तुम द्वारों को ज्यादा देर बंद नहीं रख सकोगे, इसलिए उसकी फिक्र छोड़ दो। तब आंतरिक शक्ति सभी द्वारों के खुद खोल देगी। लेकिन जहां तक तुम्हारा संबंध है, तुम बंद रखो। जब दम घुटने लगे, तब वह क्षण आता है, निर्णायक क्षण, क्योंकि घुटन पुराने एसोसिएशन तोड़ डालती है। इसलिए कुछ और क्षण जारी रख सको तो अच्छा।
यह काम कठिन होगा, मुश्किल होगा, और तुम्हें लगेगा कि मौत आ गई। लेकिन डरों मत। तुम मर नहीं सकते। क्योंकि द्वारों को बंद भर करने से तुम नहीं मरोगे। लेकिन जब लगे कि में मर जाऊँगा, तब समझो कि वह क्षण आ गया।
अगर तुम उस क्षण में धीरज से लगे रहे तो अचानक हर चीज प्रकाशित हो जाएगी। तब तुम उस आंतरिक आकाश को महसूस करोगे। जो कि फैलता ही जाता है, और जिसमें समग्र समाया हुआ है। तब द्वारों को खोल दो और तब इस प्रयोग को फिर-फिर करो। जब भी समय मिले, इसका प्रयोग में लाओ।
लेकिन इसका अभ्यास मत बनाओ। तुम श्वास को कुछ क्षण के लिए रोकने का अभ्यास कर सकते हो। लेकिन उससे कुछ लाभ नहीं होगा। एक आकस्मिक, अचानक झटक की जरूरत है। उस झटके में तुम्हारी चेतना के पुराने स्रोतों का प्रवाह बंद हो जाता है। और कोई नयी बात संभव हो जाती है।
भारत में अभी भी सर्वत्र अनेक लोग इस विधि का अभ्यास करते है। लेकिन कठिनाई यह है कि वे अभ्यास करते है। जब कि यह एक अचानक विधि हे। अगर तुम अभ्यास करो तो कुछ भी नहीं होगा। कुछ भी नहीं होगा। अगर मैं तुम्हें अचानक इस कमरे से बाहर निकाल फेंकूंगा तो तुम्हारे विचार बंद हो जाएंगे। लेकिन अगर हम रोज-रोज इसका अभ्यास करें तो कुछ नहीं होगा। तब वह एक यांत्रिक आदत बन जाएगी।
इसलिए अभ्यास मत करो; जब भी हो सके प्रयोग करो। तो धीरे-धीरे तुम्हें अचानक एक आंतरिक आकाश का बोध होगा। वह आंतरिक आकाश तुम्हारी चेतना में तभी प्रकट होता है जब तुम मृत्यु के कगार पर होते हो। तब तुम्हें लगता है कि अंग में एक क्षण भी नहीं जीऊूंगा। अब मृत्यु निकट है; तभी वह सही क्षण आता है। इसलिए लगे रहो, डरों मत।
मृत्यु इतनी आसान नहीं है। कम से कम इस विधि को प्रयोग में लाते हुए कोई व्यक्ति अब तक मरा नहीं है। इसमे अंतर्निहित सुरक्षा के उपाय है, यही कारण है कि तुम नहीं मरोगे। मृत्यु के पहले आदमी बेहोश हो जाता है। इसलिए होश में रहते हुए यह भाव आए कि मैं मर रहा हूं तो डरों मत। तुम अब भी होश में हो, इसलिए मरोगे नहीं। और अगर तुम बेहोश हो गए तो तुम्हारी श्वास चलने लगेगी। तब तुम उसे रोक नहीं पाओगे।
और तुम कान के लिए डाट काम में ला सकते हो। आंखों के पट्टी बाँध सकते हो। लेकिन नाक और मुंह के लिए कोई डाट उपयोग नहीं करने है। क्योंकि तब वह संघातक हो सकता है। कम से कम नाक को छोड़ रखना ठीक है। उसे हाथ से ही बंद करो। उस हालत में जब बेहोश होने लगोगे तो हाथ अपने आप ही ढीला हो जाएगा। और श्वास वापस आ जाएगी। तो इसमे अंतर्निहित सुरक्षा है। यह विधि बहुतों के काम की है।
चौथी विधि उनके लिए है जिनका ह्रदय बहुत विकसित है, जो प्रेम और भाव के लोग है, भाव-प्रवण लोग है।
‘’हे भगवती, जब इंद्रियाँ ह्रदय में विलीन हों, कमल के केंद्र पर पहु्ंचो।‘’
यह विधि ह्रदय-प्रधान व्यक्ति के द्वारा काम में लायी जा सकती है। इसलिए पहले यह समझने की कोशिश करो कि ह्रदय प्रधान व्यक्ति कौन है। तब यह विधि समझ सकोगे।
जो ह्रदय-प्रधान है, उस व्यक्ति के लिए सब कुछ ह्रदय ही है। अगर तुम उसे प्यार करोगे तो उसका ह्रदय उस प्यार को अनुभव करेगा, उसका मस्तिष्क नहीं। मस्तिष्क-प्रधान व्यक्ति प्रेम किए जाने पर भी प्रेम का अनुभव मस्तिष्क से लेता है। वह उसके संबंध में सोचता है, आयोजन करता है; उसका प्रेम भी मस्तिष्क का ही सुचिंतित आयोजन होता है, लेकिन भावपूर्ण व्यक्ति तर्क के बिना जीता है। वैसे ह्रदय के भी अपने तर्क है, लेकिन ह्रदय सोच-विचार नहीं करता है।
अगर कोई तुम्हें पूछे कि क्यों प्रेम करते हो और तुम उसे क्यों का जवाब दे सको तो तुम मस्तिष्क प्रधान व्यक्ति हो। और अगर तुम कहां कि मैं नहीं जानता, मैं सिर्फ प्रेम करता हूं, तो तुम ह्रदय प्रधान व्यक्ति हो। अगर तुम इतना भी कहते हो कि मैं उसे इसलिए प्यार करता हूं, कि वह सुंदर है, तो वहां बुद्धि आ गई। ह्रदयोन्मुख व्यक्ति के लिए कोई सुंदर इसलिए है कि वह उसे प्रेम करता है। मस्तिष्क वाला व्यक्ति किसी को इसलिए प्रेम करता है कि वह सुंदर है। बुद्धि पहले आती है और तब प्रेम आता है। ह्रदय प्रधान व्यक्ति के लिए प्रेम प्रथम है और शेष चीजें प्रेम के पीछे-पीछे चली आती है। वह ह्रदय में केंद्रित है, इसलिए जो भी घटित होता है वह पहले उसके ह्रदय को छूता है।
जरा अपने को देखो। हरेक क्षण तुम्हारे जीवन में अनेक चीजें घटित हो रही है। वे किसी स्थल को छूती है। तुम जा रहे हो और एक भिखारी सड़क पार करता है। वह भिखारी तुम्हें कहां छूता है। क्या तुम आर्थिक परिस्थिति पर सोच विचार करते हो। या क्या तुम यह विचारने लगते हो कि कैसे कानून के द्वारा भिखमंगी बंद की जाए। या कि कैसे एक समाजवादी समाज बनाया जाए। जहां भिखमँगे न हो।
यह एक मस्तिष्क प्रधान आदमी है। जो ऐसा सोचने लगता है। उसके लिए भिखारी महज विचार करने का आधार बन जाता हे। उसका ह्रदय अस्पर्शित रह जाता है। सिर्फ मस्तिष्क स्पर्शित होता है। वह इस भिखारी के लिए अभी और यहां कुछ नहीं करने जा रहा है। नहीं, वह साम्यवाद के लिए कुछ करेगा। वह भविष्य के लिए, किसी ऊटोपिया के लिए कुछ करेगा। वह उसके लिए अपना पूरा जीवन भी दे-दे, लेकिन अभी तत्क्षण वह कुछ नहीं कर सकता है। मस्तिष्क सदा भविष्य में रहता है। ह्रदय सदा यहां और अभी रहता है।
एक ह्रदय प्रधान व्यक्ति अभी ही भिखारी के लिए कुछ करेगा। यह भिखारी आदमी है, आंकड़ा नहीं। मस्तिष्क वाले आदमी के लिए वह गणित का आंकड़ा भर है। उसके लिए भिखमंगी बंद करना समस्या है, इस भिखारी की मदद की बात अप्रासंगिक है।
तो अपने को देखो, परखो। देखो कि तुम कैसे काम करते हो, देखो कि तुम ह्रदय की फिक्र करते हो या मस्तिष्क की। ह्रदयोन्मुख व्यक्ति हो तो यह विधि तुम्हारे काम की है। लेकिन यह बात भी ध्यान रखो कि हर आदमी आने को यह धोखा देने में लगा है कि मैं ह्रदयोन्मुख व्यक्ति हूं। हर आदमी सोचता है कि मैं बहुत प्रेमपूर्ण व्यक्ति हूं, भावुक किस्म का हूं। क्योंकि प्रेम एक ऐसी बुनियादी जरूरत है। कि अगर किसी को पता चले कि मेरे पास प्रेम करने वाला ह्रदय नहीं है। तो वह चैन से नहीं रह सकता। इसलिए हर आदमी ऐसा सोचे और माने चला जाता है।
लेकिन विश्वास करने से क्या होगा? निष्पक्षता के साथ अपना निरीक्षण करो। ऐसे जैसे कि तुम किसी दूसरे का निरीक्षण कर रहे हो और तब निर्णय लो। क्योंकि अपने को धोखा देने की जरूरत क्या है? और उससे लाभ भी क्या है? और अगर तुम अपने को धोखा भी दे दो तो तुम विधि को धोखा नहीं दे सकते। क्योंकि तब विधि को प्रयोग करने पर तुम पाओगे कि कुछ भी नहीं होता है।
लोग मेरे पास आते है। मैं उनसे पूछता हूं कि तुम किस कोटि के हो। उन्हें यथार्थत: कुछ पता नहीं है। उन्होंने कभी इस संबंध में सोचा ही नहीं कि वे किस कोटि के है। उन्हें अपने बारे में धुँधली धारणाएं है। दरअसल मात्र कल्पनाएं है। उनके पास कुछ आदर्श है, कुछ प्रतिमाएं है और वे सोचते है—सोचते क्या चाहते है—कि हम वे प्रतिमाएं होते। सच में वे है नहीं। और अक्सर तो यह होता है कि वे उसके ठीक विपरीत होते है।
इसका कारण है। जो व्यक्ति जोर देकर कहता है कि मैं ह्रदय प्रधान आदमी हूं, हो सकता है। वह ऐसा इसलिए कह रहा हो कि उसे अपने ह्रदय का अभाव खलता है। और वह भयभीत है। वह इस तथ्य को नहीं जान सकेगा। कि उसके पास ह्रदय नहीं है।
इस संसार पर एक नजर डालों। अगर अपने ह्रदय के बारे में हरेक आदमी का दावा सही है तो वह संसार इतना ह्रदय हीन नहीं हो सकता। यह संसार हम सबका कुछ जोड़ है। इसलिए कहीं कुछ अवश्य गलत है। वहां ह्रदय नहीं है।
सच तो यह है कि कभी ह्रदय को प्रशिक्षित ही नहीं क्या गया। मन प्रशिक्षित किया गया है। इसलिए मन है। मन को प्रशिक्षित करने के लिए स्कूल, कालेज, और विश्व विद्यालय है। लेकिन ह्रदय के प्रशिक्षण के लिए कोई जगह नहीं है। और मन का प्रशिक्षण लाभ दायी है, लेकिन ह्रदय का प्रशिक्षण खतरनाक है। क्योंकि अगर तुम्हारा ह्रदय प्रशिक्षित किया जाए तो तुम इस संसार के लिए बिलकुल व्यर्थ हो जाओगे। यह सारा संसार तो बुद्धि से चलता है। अगर तुम्हारा ह्रदय प्रशिक्षित हो तो तुम पूरे ढांचे से बाहर हो जाओगे। जब सारा संसार दाएं जाता होगा। तुम बाएं चलोगे। सभी जगह तुम अड़चन में पड़ोगे।
सच तो यह है कि मनुष्य जितना अधिक सुसभ्य बनता है। ह्रदय का प्रशिक्षण उतना ही कम हो जाता है। हम ता उसे भूल ही गए है। भूल गए है कि ह्रदय भी है या उसके प्रशिक्षण की जरूरत है। यही कारण है कि ऐसी विधियां जो आसानी से काम कर सकती थी, कभी काम नहीं करती।
अधिकांश धर्म ह्रदय-प्रधान विधियों पर आधारित है। ईसाइयत, इस्लाम, हिंदू तथा अन्य कई धर्म ह्रदयोन्मुख लोगो पर आधारित है। जितना ही पुराना कोई धर्म है वह उतना ही अधिक ह्रदय आधारिक है। तब वेद लिखे गए और हिंदू धर्म विकसित हो रहा था। तब लोग ह्रदयोन्मुख थे। उस समय मन प्रधान लोग खोजना मुश्किल था। लेकिन अभी समस्या उलटी है। तुम प्रार्थना नहीं कर सकते। क्योंकि प्रार्थना ह्रदय-आधारित विधि है।
यही कारण है कि पश्चिम में, जहां ईसाइयत का बोलबाला है—और ईसाइयत, खासकर कैथोलिक ईसाइयत प्रार्थना का धर्म है—प्रार्थना कठिन हो गई है। ईसाइयत में ध्यान के लिए कोई स्थान नहीं है। लेकिन अब पश्चिम में भी लोग ध्यान के लिए पागल हो रहे है। कोई अब चर्च नहीं जाता है। और अगर कोई जाता भी है तो वह महज औपचारिकता है। रविवारीय धर्म। क्यों? क्योंकि आज पश्चिम का जो आदमी है उसके लिए प्रार्थना सर्वथा असंगत हो गई है।
ध्यान ज्यादा मनोन्मुख है, प्रार्थना ज्यादा ह्रदयोन्मुख व्यक्ति की ध्यान-विधि है। यह विधि भी ह्रदय वाले व्यक्ति के लिए ही है।
‘’हे भगवती, जब इंद्रियाँ ह्रदय में विलीन हों, कमल के केंद्र पर पहु्ंचो।‘
इस विधि के लिए करना क्या है? ‘’जब इंद्रियाँ ह्रदय में विलीन हों…….।‘’ प्रयोग करके देखो। कई उपाय संभव है। तुम किसी व्यक्ति को स्पर्श करते हो; अगर तुम ह्रदय वाले आदमी हो तो वह स्पर्श शीध्र ही तुम्हारे ह्रदय में पहुंच जाएगा। और तुम्हें उसकी गुणवत्ता महसूस हो सकती है। अगर तुम किसी मस्तिष्क वाले व्यक्ति का हाथ अपने हाथ में लोगे तो उसका हाथ ठंडा होगा—शारीरिक रूप से नहीं, भावात्मक रूप से। उसके हाथ में एक तरह का मुर्दा पन होगा। और अगर वह व्यक्ति ह्रदय वाला है तो उसके हाथ में एक ऊष्मा होगी; तब उसका हाथ तुम्हारे साथ पिघलने लगेगा। उसके हाथ से कोई चीज निकलकर तुम्हारे भीतर बहने लगेगी। और तुम दोनों के बीच एक तालमेल होगा। ऊष्मा का संवाद होगा।
यह ऊष्मा ह्रदय से आ रही है। यह मस्तिष्क से नहीं आ सकती, क्योंकि मस्तिष्क सदा ठंडा और हिसाबी है। ह्रदय ऊष्मा वाला है। वह हिसाबी नहीं है। मस्तिष्क सदा यह सोचता है कि कैसे ज्यादा लें। ह्रदय का भाव रहता है कि कैसे ज्यादा दें। वह जो ऊष्मा है वह दान है—ऊर्जा का दान, आंतरिक तरंगों का दान, जीवन का दान। यही वजह है कि तुम्हें उसमे एक गहरे घुलने का अनुभव होगा।
स्पर्श करो, छुओ। आँख बंद करो और किसी चीज को स्पर्श करो। अपने प्रेमी या प्रेमिका को छुओ, अपनी मां को या बच्चे को छुओ। या मित्र को, या वृक्ष फूल या महज धरती को छुओ। आंखें बंद रखो। और धरती और अपने ह्रदय के बीच, प्रेमिका और अपने बीच होते आंतरिक संवार को महसूस करो। भाव करो कि तुम्हारा हाथ ही तुम्हारा ह्रदय है। जो धरती को स्पर्श करने को बढ़ा है। स्पर्श की अनुभूति को ह्रदय से जुड़ने दो।
तुम संगीत सुन रहे हो, उसे मस्तिष्क से मत सुनो। अपने मस्तिष्क को भूल जाओ और समझो कि मैं बिना मस्तिष्क के हूं। मेरा कोई सिर नहीं है। अच्छा है कि अपने सोने के कमरे में अपना एक चित्र रख लो जिसमें सिर न हो। उस पर ध्यान को एकाग्र करो और भाव करो कि तुम बिना सिर के हो। सिर को आने ही मत दो और संगीत को ह्रदय से सुनो। भाव करो कि संगीत तुम्हारे ह्रदय में जा रहा है। ह्रदय को संगीत के साथ उद्वेलित होने दो। तुम्हारी इंद्रियों को भी ह्रदय से जुड़ने दो, मस्तिष्क से नहीं।
यह प्रयोग सभी इंद्रियों के साथ करो, और अधिकाधिक भाव करो। के प्रत्येक ऐंद्रिक अनुभव ह्रदय में जाता है और विलीन हो जाता है।
‘’हे भगवती, जब इंद्रियाँ ह्रदय में विलीन हों, कमल के केंद्र पर पहुँचों।‘’
ह्रदय ही कमल है। और इंद्रियाँ कमल के द्वार है, कमल का पंखुडियां है। पहली बात कि अपनी इंद्रियों को ह्रदय के साथ जुड़ने दो। और दूसरी कि सदा भाव करो कि इंद्रियाँ सीधे ह्रदय में गहरी उतरती है। और उसमे धुल मिल रही है। जब ये दो काम हो जाएंगे तभी तुम्हारी इंद्रियाँ तुम्हारी सहायता करेंगी। तब वे तुम्हें तुम्हारे ह्रदय तक पहुंचा देंगी। और तुम्हारा ह्रदय कमल बन जाएगा।
यह ह्रदय कमल तुम्हें तुम्हारा केंद्र देगा। और जब तुम अपने ह्रदय के केंद्र को जान लोगे तब नाभि केंद्र को पाना बहुत आसान हो जाएगा। यह बहुत आसान है। यह सूत्र उसकी चर्चा भी नहीं करता। उसकी जरूरत नहीं है। अगर तुम सच में और समग्रता से ह्रदय में विलय हो गए, और बुद्धि ने काम करना छोड़ दिया तो तुम नाभि केंद्र पर पहुंच जाओगे।
ह्रदय ने नाभि की और द्वारा खुलता है। सिर्फ सिर से नाभि की और जाना कठिन है। या अगर तुम कहीं सिर और ह्रदय के बीच में हो तो नाभि पर जाना कठिन है। एक बासर तुम ह्रदय में विलय हो जाओ तो तुम ह्रदय के पार नाभि-केंद्र में उतर गए। और वही बुनियादी है। मौलिक है।
यही कारण है कि प्रार्थना काम करती है। और इसी कारण से जीसस कह सके कि प्रेम ईश्वर है। यह बात पूरी-पूरी सही नहीं है, लेकिन प्रेम द्वार है। अगर तुम किसी के गहरे प्रेम में हो—किसके प्रेम में हो महत्व का नहीं है, प्रेम ही महत्व का है—इतने प्रेम में कि संबंध मस्तिष्क का न रहे, सिर्फ ह्रदय काम करे, तो यही प्रेम प्रार्थना बन जाएगा। और तुम्हारा प्रेमी या प्रेमिका भगवती बन जाएगी।
सच तो यह है कह ह्रदय की आँख और कुछ नहीं देख सकती है। यह बात तो साधारण प्रेम में भी घटित होती है। अगर तुम किसी के प्रेम में पड़ते हो तो वह तुम्हारे लिए दिव्य हो उठता है। हो सकता है कि यह भाव बहुत स्थायी न हो और बहुत गहरा भी नहीं, लेकिन तत्क्षण तो प्रेमी या प्रेमिका दिव्य हो उठती है। देर-अबेर बुद्धि आकर पूरी चीज को नष्ट कर देगी। क्योंकि बुद्धि हस्तक्षेप कर सब व्यवस्था बिठाने लगेगी। उसे प्रेम की भी व्यवस्था बिठानी पड़ती है। और एक बार बुद्धि व्यवस्थापक हुई कि सब चीजें नष्ट हो जाती है।
आगर तुम सिर की व्यवस्था के बिना प्रेम में हो सको तो तुम्हारा प्रेम अनिवार्यत: प्रार्थना बनेगा। और तुम्हारी प्रेमिका द्वार बन जाएगी। तुम्हारा प्रेम तुम्हें ह्रदय में केंद्रित कर देगा। और एक बार तुम ह्रदय में केंद्रित हुए कि तुम अपने ही आप नाभि केंद्र में गहरे उतर जाओगे।
ओशो
विज्ञान भैरव तंत्र
(तंत्र-सूत्र—भाग-1)
प्रवचन-9