समाधि : अहं शून्यता, समय-शून्यता के अनुभव-4
मेरे प्रिया आत्मन,
एक छोटा सा गांव था, उस गांव के स्कूल में शिक्षक राम की कथा पढ़ाता था। करीब-करीब सारे बच्चे सोये हुए थे।
राम की कथा सुनते-सुनते बच्चे सो जाये, ये आश्चर्य नहीं। क्योंकि राम की कथा सुनते समय बूढे भी सोते है। इतनी बार सुनी जा चुकी है जो बात उसे जाग कर सुनने का कोई अर्थ भी नहीं रह जाता।
बच्चे सोये थे और शिक्षक भी पढ़ा रहा था। लेकिन कोई भी उसे देखता तो कह सकता था कि वह भी सोया हुआ पढ़ाता है। उसे राम की कथा कंठस्थ थी। किताब सामने खुली थी। लेकिन किताब पढ़ने की उसे जरूरत न थी। उसे सब याद था। यह यंत्र की भांति कहे जाता था। शायद ही उसे पता हो कि वह क्या कह रहा है।
तोतों को पता नहीं होता है कि वे क्या कह रहे है। जिन्होंने शब्दों को कंठस्थ कि लिया है, उन्हें भी पता नहीं होता की वे क्या कह रहे है।
और तभी अचानक एक सनसनी दौड़ गयी कक्षा में। अचानक ही स्कूल का निरीक्षक आ गया था। वह कमरे के भीतर गया। बच्चे सजग होकर बैठ गये। शिक्षक भी सजग होकर पढ़ाने लगा। उसे निरीक्षक ने कहां कि मैं कुछ पूछना चाहूंगा। और चूंकि राम की कथा पढ़ाई जाती है। इसलिए राम से संबंधित ही कोई प्रश्न पूछा। उसने बच्चों से एक सीधी सी बात पूछी। उसने पूछा कि ‘शिव का धनुष किसने तोड़ा था?’ उसने सोचा कि बच्चों को तोड़-फोड़ की बात बहुत याद रह जाती है। उन्हें जरूर याद होगा कि किसने शिव का धनुष तोड़ा।
लेकिन इसके पहले कि कोई बोले, एक बच्चे ने हाथ हिलाया और खड़े होकर कहा, क्षमा करिये। मुझे पता नहीं कि किसने तोड़ा था। एक बात निश्चित है कि मैं 15 दिन से छुट्टी पर था। मैंने नहीं तोड़ा है। और इसके पहले कि मेरे पर इलजाम लग जाये, में पहले ही साफ कर देना चाहता हूं। कि धनुष का मुझे कुछ पता नहीं है। क्योंकि जब भी स्कूल की कोई भी चीज टूटती है तो सबसे पहले मेरे उपर दोषारोपण आता है। इसलिए मैं निवेदन किये देता हूं।
निरीक्षक तो हैरान रह गया। उसने सोचा भी नहीं था कि कोई यह उत्तर देगा।
उसने शिक्षक की तरफ देखा। शिक्षक अपना बेंत निकाल रहा था और उसने कहा, जरूर इसी बदमाश ने तोड़ा होगा। इसकी हमेशा की आदत है। और अगर तूने नहीं तोड़ा था तो तूने खड़े होकर क्यों कहा कि मैंने नहीं तोड़ा है?
और उसने इंस्पेक्टर से कहा कि इसकी बातों में मत आयें, यह लड़का शरारती है। और स्कूल में सौ चीजें टूटे तो 99 यहीं तोड़ता है।
तब तो वह निरीक्षक और भी हैरान हो गया। फिर उसने कुछ भी वहां कहना उचित नहीं समझा। वह सीधा प्रधान अध्यापक के पास गया। जाकर उसने कहां कि ये-ये घटना घटी है। राम की कथा पढ़ाई जाती थी जिस कक्षा में, उसमें मैंने पूछा कि शिव का धनुष किसने तोड़ा है। तो एक बच्चे ने कहां कि मैंने नहीं तोड़ा है। मैं 15 दिन से छुट्टी पर था। यहां तक भी गनीमत थी। लेकिन शिक्षक ने यह कहा कि जरूर इसी ने तोड़ा होगा। जब भी कोई चीज टूटती है तो यह जिम्मेदार होता है। इसके संबंध में क्या किया जाये?
उस प्रधान अध्यापक ने कहा कि इस संबंध में एक ही बात की जा सकती है कि अब बात को आगे न बढ़ाया जाये, क्योंकि लड़कों से कुछ भी कहना खतरा मोल लेना है। किसी क्षण भी हड़ताल हो सकती है। अनशन हो सकता है। अब जिसने भी तोड़ा होगा। आप कृपा करें और बात बंद करें। कोई दो महीने से शांति चल रही है स्कूल में, उसको भंग करने की कोशिश मत करें। न मालूम कितना फर्नीचर तोड़ डाला है लड़कों ने। हम चुपचाप देखते रहते है। स्कूल की दीवालें टूट रही है, हम चुपचाप देखते रहते है। क्योंकि कुछ भी बोलना खतरनाक है। हड़ताल हो सकती है। अनशन हो सकता है। इसलिए चुपचाप देखने के सिवाय कोई मार्ग नहीं है।
वह इंस्पेक्टर तो अवाक। वह तो आंखे फाड़े रह गया। अब कुछ कहने का उपाय न था वह वहां से सीधा स्कूल की जो शिक्षा समिति थी उसके अध्यक्ष के पास गया। और उसने जाकर कहा कि यह हालत है स्कूल की। राम की कथा पढ़ाई जाती है। वहां बच्चा कहता है कि मैंने शिव का धनुष नहीं तोड़ा, शिक्षक कहता है कि इसी ने तोड़ा होगा, प्रधान अध्यापक कहता है कि जिसने भी तोड़ा हो बात को रफा-दफा कर दें। शांत कर दें। इसे आगे बढ़ाना ठीक नहीं, हड़ताल हो सकती है। आप क्या कहते है?
उस अध्यक्ष ने कहा, ठीक ही कहता है प्रधान अध्यापक। किसी ने भी तोड़ा हो हम ठीक करवा देंगे समिति की तरफ से। आप फर्नीचर वाले के यहां भिजवा दें और ठीक करवा लें। इसकी चिंता करने की जरूरत नहीं कि किसने तोड़ा। सुधरवाने का उपाय होगा। आपको सुधरवाने की जरूरत है और क्या करना है?
वह स्कूल का इंस्पेक्टर मुझसे ये सारी बातें कहता था। वह मुझसे पूछने लगा कि क्या स्थिति है यह? मैंने उससे कहा कि इसमे कुछ बड़ी स्थिति नहीं है। मनुष्य की एक सामान्य कमजोरी है, वही इस कहानी में प्रकट होती है। और वह कमजोरी क्या है?
वह कमजोरी यह है कि जिस संबंध में हम कुछ भी नहीं जानते है, उस संबंध में भी हम ऐसी घोषणा करना चाहते है कि हम जानते है। वह कोई भी कुछ नहीं जानते थे कि शिव का धनुष क्या है? क्या उचित न होता कि वह कह देते कि हमें पता नहीं है कि शिव का धनुष क्या है। लेकिन अपना अज्ञान कोई भी स्वीकार नहीं करना चाहता है।
मनुष्य जाति के इतिहास में इससे बड़ी कोई दुर्घटना नहीं घटी है कि हम अपना अज्ञान स्वीकार करने को राज़ी नहीं होते। जीवन के किसी भी प्रश्न के संबंध में कोई भी आदमी इतनी हिम्मत और साहस नहीं दिख पाता है। कि मुझे नहीं पता है। यह कमजोरी बहुत घातक सिद्ध होती है। सारा जीवन व्यर्थ हो जाता है।
और चूंकि हम यह मानकर बैठ जाते है कि हम जानते है, इसलिए जो उत्तर हम देते है वह इतने ही मूर्खतापूर्ण होते है, जितने उस स्कूल में दिये गये थे—बच्चों से लेकिर अध्यक्ष तक। जिसका हमें पता नहीं हे उसका उत्तर देने की कोशिश सिवाय मूढ़ता के और कहीं भी नहीं ले जायेगी। फिर यह तो हो भी सकता है शिव का धनुष किसने तोड़ा या न तोड़ा1 इससे जीवन को कोई गहरा संबंध नहीं है लेकिन जिन प्रश्नों के जीवन से बहुत गहरे संबंध है जिनके आधार पर सारा जीवन सुन्दर बनेगा या कुरूप हो जायेगा। स्वस्थ बनेगा या विक्षिप्त हो जायेगा; जिनके आधार पर जीवन की सारी गति और दिशा निर्भर है, उन प्रश्नों के संबंध में भी हम यह भाव दिखलाने की कोशिश करते है कि हम जानते है। और फिर जो हम जीवन में उत्तर देते है वह बता देते है कि हम कितना जानते है।
एक-एक आदमी की जिन्दगी बता रही है कि हम जिंदगी के संबंध में कुछ भी नहीं जानते है—अन्यथा इतनी असफलता, इतनी निराश, इतनी दुख,इतनी चिन्ता।
यही बात मैं सेक्स के संबंध में आपसे कहना चाहता हूं कि हम कुछ भी नहीं जानते है।
आप बहुत हैरान होंगे। आप कहेंगे कि हम यह मान सकते है कि ईश्वर के संबंध में कुछ नहीं जानते,आत्मा के संबंध में कुछ नहीं जानते; लेकिन हम यह कैसे मान सकते है कि हम काम के यौन के और सैक्स के संबंध में कुछ नहीं जानते? सबूत है—हमारे बच्चे पैदा हुए है, पत्नी है। हम सेक्स के संबंध मे नहीं जानते है?
लेकिन मैं आपसे निवेदन करना चाहता हूं कि यह बहुत कठिन पड़ेगा, लेकिन इसे समझ लेना जरूरी है। आप सेक्स के अनुभव से गूजरें होंगे। लेकिन सेक्स के संबंध में आप इतना ही जानते है कि जितना छोटा सा बच्चा जानता है। उससे ज्यादा कुछ भी नहीं जानते है। अनुभव से गुजर जाना जान लेने के लिए पर्याप्त नहीं है।
एक आदमी कार चलाता है वह कार चलाना जानता है और हो सकता है हजारों मील कार चलाकर वह आ गया हो; लेकिन उससे यह कोई मतलब नहीं होता है कि वह कार के भीतर के यंत्र और मशीन और उसकी व्यवस्था, उसके काम करने के ढंग के संबंध में कुछ भी जानता हो। वह कहा सकता है कि मैं हजार मील चल कर आया हूं कार से। मैं नहीं जानता हूं कार के संबंध में? लेकिन कार चलाना एक ऊपरी बात है और कार की पूरी आंतरिक व्यवस्था को जानना बिलकुल दूसरी बात है।
एक आदमी बटन दबाता है और बिजली चल जाती है। वह आदमी यह कह सकता है कि मैं बिजली के संबंध में सब जानता हूं। क्योंकि में बटन दबाता हूं और बिजली जल जाती है। बटन दबाता हूं बिजली बुझ जाती है। मैंने हजार दफा बिजली जलायी इसलिए मैं बिजली के सबंध में सब जानता हूं हम कहेंगे कि वह पागल है बटन दबाना और बिजली जला लेना और बुझा लेना बच्चें भी कर सकते है। इसके लिए बिजली के ज्ञान की कोई जरूरत नहीं है।
बच्चे कोई भी पैदा सकता है। सेक्स को जानने से इसका कोई संबंध नहीं है। शादी कोई भी कर सकता है। पशु भी बच्चे पैदा कर रहे है, लेकिन वे सेक्स संबंध कुछ जानते है। इस भ्रम में पड़ने का कोई कारण नहीं। सच तो यह है कि सेक्स को कोई विज्ञान ही विकसित नहीं हो सका। सेक्स का कोई शास्त्र ठीक से विकसित नहीं हो सका। क्योंकि हर आदमी यह मानता है कि हम जानते है। शास्त्र की जरूरत क्या है। विज्ञान की जरूरत क्या है।
और मैं आपसे कहता हूं कि इससे बड़े दुर्भाग्य की और कोई बात नहीं है क्योंकि जिस दिन सेक्स का पूरा शास्त्र और पूरा विचार और पूरा विज्ञान विकसित होगा उस दिन हम बिलकुल नये तरह के आदमी को पैदा करने में समर्थ हो सकते है। फिर यह कुरूप और अपंग मनुष्य पैदा करने की जरूरत नहीं है। यह रूग्ण और रोते हुए और उदास आदमी पैदा करने की कोई जरूरत नहीं है। यह पाप और अपराध से भरी हुई संतति को जन्म देने की जरूरत नहीं है।
लेकिन हमें कुछ भी पता नहीं है। हम सिर्फ बटन दबाना और बुझाना जानते है और उसी से हमने समझ लिया है कह हम बिजली के जानकार हो गये है। सेक्स के संबंध में पूरी जिंदगी बीत जाने के बाद भी आदमी इतना ही जानता है के बटन दबाना और बुझाना इससे ज्यादा कुछ भी नहीं। लेकिन चूंकि यह भ्रम है कि हम सब जानते है; इसलिए इस संबंध में कोई शोध कोई खोज कोई विचार कोई चिंतन को कोई उपाय नहीं है। और इसी भ्रम के कारण कि हम सब जानते है। हम किसी से न कोई बात करते है न विचार करते है, न सोचते है। क्योंकि जब सभी को सब पता है तो जरूरत क्या है?
और मैं आप से कहना चाहता हूं कि जीवन में और जगत में सेक्स के अणु को भी पूरी तरह जान सकेंगे, उस दिन मनुष्य जाति ज्ञान के एक बिलकुल नये जगत में प्रविष्टि हो जायेगी। अभी हमने पदार्थ की थोड़ी बहुत खोजबीन की है और दुनिया कहां से कहां पहुंच गई। जिस दिन हम चेतना के जन्म की प्रक्रिया और कीमिया को समझ लेंगे, उस दिन हम मनुष्य को कहां से कहां पहुंचा देंगे। इसको आज कहना कठिन है। लेकिन एक बात निश्चित कहीं जा सकती है कि काम की शक्ति और काम की प्रक्रिया जीवन और जगत में सर्वाधिक रहस्यपूर्ण सर्वाधिक गहरी सबसे मूल्यवान बात है। और उसके संबंध में हम बिलकुल चुप है। जो सर्वाधिक मूल्यवान है, उसके संबंध में कोई बात भी नहीं की जाती। आदमी जीवन भी संभोग से गुजरता है और अंत तक भी नहीं जान पाता है कि क्या था संभोग।
और जब मैंने पहले दिन आपसे कहा कि शून्य का—अहंकार शून्यता का, विचारशून्यता का अनुभव होगा। तो अनेक मित्रों को यह बात अनहोनी,आश्चर्यजनक लगी है। एक मित्र ने लौटते ही मुझे कहा यह तो मेरे ख्याल में भी न था। लेकिन ऐसा हुआ है। एक बहन ने आज मुझे आकर कहा, लेकिन मुझे तो इसका कोई अनुभव नहीं है आप कहते है कि इतनी मुझे ख्याल आता है कि मन थोड़ा शांत और मौन होता है। लेकिन मुझे अहंकार शून्यता का यह किसी और गहरे अनुभव का कोई भी पता नहीं।
हो सकता है अनेकों को इस संबंध में विचार मन में उठा हो। उस संबंध में थोड़ी सी बातें ओर गहराई से स्पष्ट कर लेना जरूरी है।
पहली बात मनुष्य जन्म के साथ ही संभाग के पूरे विज्ञान को जानता हुआ पैदा नहीं होता है। शायद पृथ्वी पर बहुत थोड़े से लोग अनेक जीवन के अनुभव के बाद संभोग की पूरी की पूरी कला और पूरी की पूरी विधि और पूरा शास्त्र जानने में समर्थ हो पाते है। और ये ही वे लोग है। जो ब्रह्मचर्य को उपलब्ध हो जाते है। क्योंकि जो व्यक्ति संभोग को पूरी तरह से जानने में समर्थ हो जाता है, उस के लिए संभोग व्यर्थ हो जाता है। वह उस के पास निकल जाता है। वह उस का अतिक्रमण कर जाता है। लेकिन इस संबंध में कुछ बहुत स्पष्ट बातें नहीं कही गई है।
( क्रमश: अगले अंक में ………………देखें)
ओशो
संभोग से समाधि की ओर,
प्रवचन—4
गोवा लिया टैंक, बम्बई,
1 अक्टूबर—1968,