जनसंख्या विस्फोट
कुछ प्रश्न उठाये जाते है। यहां उनके उत्तर देना पसंद करूंगा:–
एक मित्र ने पूछा है कि अगर यह बात समझायी जाये तो जो समझदार है, बुद्धिजीवी है, इंटेलिजेन्सिया है, मुल्क का जो अभिजात वर्ग है, बुद्धिमान और समझदार है, वह तो संतति नियमन कर लेगा, परिवार नियोजन कर लेगा। लेकिन जो गरीब है, दीन-हीन है, वे पढ़े लिखे ग्रामीण है, जो कुछ समझते ही नही, वह बच्चे पैदा करते ही चले जायेंगे और लम्बे अरसे में परिणाम यह होगा कि बुद्धि मानों के बच्चे कम हो जायेगे और गैर-बुद्धि मानों के बच्चों की संख्या बढ़ती जायेगी।
इसे दूसरे तरह से धर्म-गुरु भी उठाते है। वे कहते है कि मुसलमान तो सुनते ही नहीं, ईसाई सुनते नहीं, कैथोलिक सुनते नही, वे कहते है कि ‘संतति नियमन’ हमारे धर्म के विरोध में है। मुसलमान फ्रिक नहीं करता तो हिन्दू क्यों फ्रिक करेगा। हिन्दू धर्म गुरु कहते है कि हिन्दू सिकुड़े और मुसलमान, ईसाई बढ़ते चले जायेंगे। पचास साल में मुश्किल हो जायेगी, हिन्दू नगण्य हो जायेंगे। मुसलमान और ईसाई बढ़ जायेंगे। इस बात में भी थोड़ा अर्थ है।
इन दोनों के संबंध में कुछ कहना चाहूंगा।
पहली बात तो यह है कि संतति नियमन कम्पलसरी, अनिवार्य होना चाहिए, वालेन्टरी, इेच्छिक नहीं।
जब तक हम एक-एक आदमी को समझाने की कोशिश करेंगे की तुम्हें संतति नियमन करवाना चाहिए, तब तक इतनी भीड़ हो चुकी होगी कि संतति नियमन का कोई अर्थ नहीं रह जायेगा।
एक अमेरिकी विचार ने लिखा है कि इस वक्त सारी दुनिया में जितने डाक्टर परिवार नियोजन में सहयोगी हो सकते है, अगर वि सब के सब एशिया में लगा दिए जायें,और वे बिलकुल न सोये चौबीस घंटे आपरेशन करते रहें, तो भी उन्हें एशिया को उस स्थिति में लाने के लिए, जहां जनसंख्या नियंत्रण में आ जाय, पाँच सौ वर्ष लगेंगे। और पाँच सौ वर्ष में तो हमने इतने बच्चे पैदा कर लिए होंगे जिसका कोई हिसाब नहीं रह जायेगा।
ये दोनों संभावनाएं नहीं है। दुनिया के सभी डाक्टर एशिया में लाकर लगाये नहीं जा सकते। और पाँच सौ वर्ष में हम खाली थोड़े ही बैठे रहेंगे। पाँच सौ वर्षों में तो हम जाने क्या कर डालेंगे। नहीं यह संभव नहीं होगा। समझाने बुझाने के प्रयोग से तो सफलता दिखाई नहीं पड़ती है।
संतति नियमन तो अनिवार्य करना पड़ेगा और यह अलोकतांत्रिक नहीं है।
एक आदमी की हत्या करने में जितना नुकसान होता है, उससे हजार गुना नुकसान एक बच्चे को पैदा करने से होता है। आत्महत्या से जितना नुकसान होता है, एक बच्चा पैदा करने से उससे हजार गुणा नुकसान होता है। समझाने-बुझाने के प्रयोग से तो सफलता दिखाई नहीं पड़ती।
संतति नियमन तो अनिवार्य होना चाहिए।
तब गरीब व अमीर और बुद्धिमान व गैर बुद्धिमान का सवाल नहीं रह जायगा। तब हिन्दू, मुसलमान और ईसाई का सवाल नहीं रह जायेगा।
यह देश बड़ा अजीब है, हम कहते है कि हम धर्मनिरपेक्ष है, और फिर भी सब चीजों में धर्म का विचार करते है। सरकार भी विचार रखती है। ‘हिन्दू कोड बिल’ बना हुआ है। वह सिर्फ हिन्दू स्त्रियों पर ही लागू होता है। यह बड़ी अजीब बात है। सरकार जब धर्म निरपेक्ष है तो मुसलमान स्त्रियों को अलग करके सोचे, यह बात ही गलत है। सरकार को सोचना चाहिए स्त्रियों के संबंध में।
मुसलमान को हक है कि वह चार शादियाँ करे,किन्तु हिन्दू को हक नहीं है। तो मानना क्या होगा? यह धर्म निरपेक्ष राज्य कैसे हुआ?
हिन्दुओं के लिए अलग नियम और मुसलमान के लिए अलग नियम नहीं होना चाहिए।
सरकार को सोचना चाहिए ‘स्त्री‘ के लिए। क्या यह उचित है कि चार स्त्रियां एक आदमी की पत्नी बने? यह हिन्दू हो या मुसलमान, यह असंगत है। चार स्त्रियों एक आदमी की पत्नियाँ बने, यह बात ही अमानवीय है।
यह सवाल नहीं है कौन हिन्दू है और कौन मुसलमान है। यह अपनी-अपनी इच्छा की बात है। फिर कल हम यह भी कह सकते है कि मुसलमान को हत्या करने की थोड़ी सुविधा देनी चाहिए। ईसाई को थोड़ी या हिन्दू को थोड़ी सुविधा देनी चाहिए हत्या करने की। नहीं, हमें व्यक्ति और आदमी की दृष्टि से विचार करने की जरूरत नहीं है। यह सवाल पूरे मुल्क का है, इसमें हिन्दू, मुसलमान और ईसाई अलग नहीं किये जा सकते।
दूसरी बात विचारणीय है कि हमारे देश में हमारी प्रतिभा निरंतर क्षीण होती चली गयी है। और अगर हम आगे भी ऐसे ही बच्चे पैदा करना जारी रखते है तो संभावना है कि हम सारे जगत में प्रतिभा में धीरे-धीरे पिछड़ते चले जायेंगे।
अगर इस जाति को ऊँचा उठाना हो—स्वास्थ्य में, सौन्दर्य में, प्रतिभा में, मेधा में तो हमें प्रत्येक आदमी को बच्चे पैदा करने का हक नहीं देना चाहिए।
संतति नियमन अनिवार्य तो होना ही चाहिए। बल्कि जब तक विशेषज्ञ आज्ञा न दें, तब तक बच्चा पैदा करने का हक किसी को भी नहीं रह जाना चाहिए। मेडिकल बोर्ड जब तक अनुमति न दे-दे, तब तक कोई आदमी बच्चे पैदा न कर सके।
कितने कोढ़ी बच्चे पैदा किये जाते है, कितने ईडियट, मूर्ख पैदा किये जाते है। कितने संक्रामक रोगों से भरे लोग बच्चे पैदा करते है और उनके बच्चे पैदा होते चले जाते है। और देश में दया और धर्म करने वाले लोग है। अगर वे खुद अपने बच्चे न पाल सकते हों, तो हम उनके लिए अनाथालय खोलकर उनके बच्चों पालने का भी इंतजाम कर देते है। ये ऊपर से तो दान और दया दिखाई पड़ रही है, लेकिन है बड़ी खतरनाक इंतजाम। इंतजाम तो यह होना चाहिए कि बच्चे स्वस्थ,सुन्दर,बुद्धिमान, प्रतिभाशाली वह संक्रामक रोगों से मुक्त हों।
असल में शादी के पहले ही हर गांव में हर नगर में डॉक्टरों की, विचारशील मनोवैज्ञानिकों, साइकोलॉलिस्टस की सलाहकारसमिति होनी चाहिए। जो प्रत्येक व्यक्ति को निर्देश दे। अगर दो व्यक्ति शादी करते है, तो वे बच्चे पैदा कर सकेंगे या नहीं, यह बता दें। शादी करने का हक प्रत्येक को है। ऐसे दो लोग भी शादी कर सकेंगे जिनको सलाह नदी गयी हो, लेकिन बच्चो पैदा न कर सकेंगे।
हम जानते है कि पौधे पर ‘क्रास ब्रीडिंग’ से कितना लाभ उठाया जा सकता है। एक माली अच्छी तरह जानता है कि नये बीज कैसे विकसित किये जाते है। गलत बीजों को कैसे हटाया जा सकता है। छोटे बीज कैसे अलग किये जा सकते है, बड़े बीज कैसे बचाये जा सकते है। एक माली सभी बीज नहीं बो देता। बीजों को छाँटता है।
हम अब तक मनुष्य-जाति के साथ उतनी समझदारी नहीं कर सके, जो एक साधारण सा माली बग़ीचे में करता है। यह भी आपको ख्याल हो कि जब माली को बड़ा फूल पैदा करना होता है तो वह छोटे फूलों को पहले काट देता है। आपने कभी फूलों की प्रदर्शनी देखी है, जो फूल जीतते है,उनके जीतने का कारण क्या है?
उनका कारण यह है कि माली ने होशियारी से एक पौधे पर एक ही फूल पैदा किया। बाकी फूल पैदा ही नहीं होने दिये। बाकी फूलों को उसने जड़ से ही अलग कर दिया, पौधे की सारी शक्ति एक ही फूल में प्रवेश कर गयी।
एक आदमी बारह बच्चे पैदा करता है तो भी कभी भी बहुत प्रतिभाशाली बच्चे पैदा नहीं कर सकता। अगर एक ही बच्चा पैदा करे तो बारह बच्चों की सारी प्रतिभा एक बच्चे में प्रवेश कर सकती है।
प्रकृति के भी बड़े अद्भुत नियम है। प्रकृति बड़े अजीब ढंग से काम करती है। जब युद्ध होता है दुनिया में,तो युद्ध के बाद लोगों की संतति पैदा करने की क्षमता बढ़ जाती है। यह बड़ी हैरानी की बात है। युद्ध से क्या लेना-देना। जब-जब भी युद्ध होता है तो जन्म दर बढ़ जाती है। पहले महायुद्ध के बाद जन्म दर एकदम ऊपर उठ गई, कयोंकि पहले महायुद्ध में साढ़े तीन करोड़ लोग मर गये थे। प्रकृति कैसे इंतजाम रखती है। यह भी हैरानी की बात है। प्रकृति को कैसे पता चला कि युद्ध हो गया, और अब बच्चों की जन्म दर बढ़ जानी चाहिए। दूसरे महायुद्ध में भी कोई साढ़े सात करोड़ लोग मारे गये। जन्म दर एकदम बढ़ गई। महामारी के बाद हैजा के बाद,प्लेग के बाद लोगों की जन्म दर बढ़ जाती है।
अगर एक आदमी पचास बच्चे पैदा करे तो उसकी शक्ति पचास पर बिखर जाती है। अगर वह एक ही बच्चे पर केन्द्रित करे तो उसकी शक्ति,उसकी प्रतिभा प्रकृति एक ही बच्चे में डाल सकती है। सौ लड़कियां पैदा होती है तो लड़के 116 पैदा होते है। यह अनुपात है सारी दुनिया में। और यह बड़े मजे की बात है कि 116 लड़के किस लिए पैदा होते है? 16 लड़ते बेकार रह जायेगे, इन्हें कौन लड़की देगा? 100लड़कियां पैदा होती है, 116 लड़के पैदा होते है। लेकिन प्रकृति का इंतजाम बड़ा अद्भुत है। प्रकृति का इंतजाम बहुत गहरा है। वह लड़कियों को कम पैदा करती है और लड़कों को अधिक; क्योंकि उम्र पाते-पाते प्रौढ़ होते-होते16 लड़के मर जाते है। और संख्या बराबर हो जाती है। असल में लड़कियों के जीवन में जीने की रेजिस्टेन्स, अवरोध-क्षमता लड़कों से ज्यादा होती है। इस लिए 16 लड़के ज्यादा पैदा होते है। हर 14 साल बाद संख्या बराबर हो जाती है। लड़कियों में जिंदा रहने की शक्ति लड़कों से ज्यादा है।
आमतौर पर पुरूष सोचता है कि हम सब तरह से शक्तिवान है। इस भूल में मत पड़ना। कुछ बातों को छोड़कर स्त्रियां पुरूषों से कई अर्थों में ज्यादा शक्तिवान है, उनका रेजिस्टेन्स, उनकी शक्ति कई अर्थों में ज्यादा है। शायद प्रकृति ने स्त्री को सारी क्षमता इसलिए दी है कि वह बच्चे को पैदा करने की बच्चे को झेलने की, बड़ा करने की जो इतनी तकलीफदेह प्रक्रिया है, उन सब को झेल सके। प्रकृति सब इंतजाम कर देती है। अगर हम बच्चे कम पैदा करेंगे तो प्रकृति जो अनेक बच्चों पर प्रतिभा देती है। वह एक बच्चे पर डाल देगी।
आदमी इस लिए रहा है कि वह दूसरी चीजों के विषय में वैज्ञानिक चिंतन कर लेता है, लेकिन आदमियों के संबंध में नहीं करता। आदमियों के संबंध में हम बड़े अवैज्ञानिक है। हम कहते है कि हम कुंडली मिलायेंगे। हम कहते है कि हम ब्राह्मण से ही शादी करेंगे।
विज्ञान तो कहता है की शादी जितनी दूर हो उतनी ही अच्छी है। अगर अन्तर जातीय होत बहुत अच्छा है। अंतर्देशीय हो; तो और भी अच्छा है। और अंतर्राष्ट्रीय हो तो अधिक अच्छा है। और आज नहीं तो कल अंतर्ग्रहीय हो जाये, मंगल पर या कहीं और आदमी मिल जाये तो और भी अच्छा है। क्योंकि हम जानते है कि अंग्रेजी सांड और हिन्दुस्तानी गाय हो तो जो बछड़े पैदा होंगे? उसका मुकाबला नहीं रहेगा।
हम आदमी के संबंध में समझ का उपयोग कब करेंगे?
अगर हम समझ का उपयोग करेंगे तो जो हम जानवरों के साथ कर रहे है, समृद्ध फूलों के साथ कर रहे है। वही आदमी के साथ करना जरूरी होगा। ज्यादा अच्छे बच्चे पैदा किये जा सकते है, ज्यादा स्वस्थ,ज्यादा उम्र जीने वाले, प्रतिभा शाली। लेकिन उनके लिए कोई व्यवस्था देने की जरूरत है।
परिवार नियोजन,मनुष्य के वैज्ञानिक संतति नियोजन का पहला कदम है।
अभी और कदम उठाने पड़ेंगे, यह तो अभी सिर्फ पहला कदम है। लेकिन पहले कदम से ही क्रांति हो जाती है। वह क्रांति आपके ख्याल में नहीं है। वह मैं आपसे कहना चाहूंगा। जो बड़ी क्रांति परिवार नियोजन की व्यवस्था से हो जाती है। हम पहली बार सेक्स को यौन को संतति से तोड़ देते है। अब तक यौन संभोग का अर्थ था—संतति का पैदा होना। अब हम दोनों को तोड़ देते है। अब हम कहते है, संतति को पैदा होने की कोई अनिवार्यता नहीं है।
यौन और संतति को हम दो हिस्सों में तोड़ रहे है—यह बहुत बड़ी क्रांति है।
इसका मतलब अंतत: यह होगा कि अगर यौन से संतति के पैदा होने की संभावना नहीं है तो कल हम ऐसी संतति को भी पैदा करने की व्यवस्था करेंगे जिसका हमारे यौन से कोई संबंध न हो—यह दूसरा कदम होगा।
संतति नियमन का अंतिम परिणाम यह होने वाला है कि हम वीर्य-कणों को सुरक्षित रखने की व्यवस्था कर सकेंगे? आइंस्टीन का वीर्य कण उपलब्ध हो सकता है।
एक आदमी के पास कितने वीर्य-कण है। कभी आपने सोचा है? एक संभोग में एक आदमी कितने वीर्य कण खोता है? एक संभोग में एक आदमी इतने वीर्य कण खोता है कि उनसे एक करोड़ बच्चे पैदा हो सकत है। और एक आदम अंदाजन जिंदगी में चार हजार बार संभोग करता है। याने एक आदम चार हजार करोड़ बच्चों को जन्म दे सकता है।
एक आदमी के वीर्य कण अगर संरक्षित हो सकें तो एक आदमी चार करोड़ बच्चों का बाप बन सकता है। एक आइंस्टीन चार हजार बच्चों को जन्म दे सकता है। एक बुद्ध चार हजार बच्चों को जन्म दे सकता है।
क्या ये उचित होगा की हम आदमी की बाबत विचार करे। और हम इस बात की खोज करें? संतति नियमन ने पहली घटना शुरू कर दी, हमने सेक्स को तोड़ दिया। अब हम कहते है कि बच्चे की फिक्र छोड़ दो संभोग किया जा सकता है। संभोग का सुख लिया जा सकता है। बच्चे की चिंता की कोई जरूरत नहीं है। जैसे ही यह बात स्थापित हो जायेगी। दूसरी कदम भी उठाया जा सकता है।
और वह यह कि—अब जिससे संभोग करते हों, उससे ही बच्चा पैदा हो, तुम्हारे ही संभोग से बच्चा पैदा हो, यह भी अवैज्ञानिक है।
और अच्छी व्यवस्था की जा सकती है, और वीर्य-कण उपलब्ध किया जा सकता है। वैज्ञानिक व्यवस्था की जा सकती है। और तुम्हें वीर्य कण मिल सकता है। चूंकि अब तक हम उसको सुरक्षित नहीं रख सकते थे। अब तो उसको सुरक्षित रखा जा सकता है। अब जरूरी नहीं कि आप जिंदा हों, तभी आपका बेटा पैदा हो। आपके मरने के 50 साल बाद भी आपका बेटा पैदा हो सकता है।
इसलिए यह जल्दी करने की जरूरत नहीं है कि मेरा बेटा मेरे जिंदा रहने में ही पैदा हो जाये। वह बाद में 10 हजार साल बाद भी पैदा हो सकता है। अगर मनुष्यों ने समझा कि आपका बेटा पैदा करना जरूरी है। तो वह आपके लिए सुरक्षा कर सकता है।
आपका बच्चा कभी भी पैदा हो सकता है। अब बाप और बेटे का अनिवार्य संबंध उस हालत में नहीं रह जायेगा। जिस हालत में अब तक था, वह टूट जायेगा।
एक क्रांति हो रही है। लेकिन इस देश में हमारे पास समझ बहुत कम है। अभी तो हम संतति नियमन को ही नहीं समझ पा रहे है। यह पहला कदम है, यह सेक्स मारेलिटी के संबंध में पहला कदम है। और एक दफा सेक्स की पुरानी आदत, पुरानी नीति टूट जाये तो इतनी क्रांति होगी कि जिसका हिसाब लगाना मुश्किल है। क्योंकि हमें पता भी नहीं कि जो भी हमारी नीति है वह किसी पुरानी यौन व्यवस्था से संबंधित है। यौन व्यवस्था पूरी तरह टूट जाये तो पूरी नीति बदल जाती है।
धर्म-गुरु इसलिए भी डरा हुआ है। गांधी जी और विनोबा जी इसलिए भी डरे हुए है कि अगर यह कदम उठाया गया तो यह पुरानी नैतिक व्यवस्था को तोड़ देगा। नयी निति विकसित हो जायेगी। क्योंकि पुरानी नीति का कोई अर्थ नहीं रह जायेगा।
अब तक स्त्री को निरंतर दबाया जा सकता था। पुरूष अपने सेक्स के संबंध में स्वतंत्रता बरत सकता है। क्योंकि उसको पकड़ना मुश्किल है।
इसलिए, पुरूष ने ऐसी व्यवस्था बनायी था, जिसमे स्त्री की पवित्रता और अपनी स्वतंत्रता का पूरा इंतजाम रखा था। इसलिए स्त्री को सती होना पड़ता था, पुरूष को नहीं।
इसलिए स्त्री के कुँवारे रहने पर भारी बल था, पुरूष के कुँवारे रहने की कोई चिंता न थी। इस लिए अब भी माताएं ओर स्त्रियां कहती है। कि लड़के तो लड़के है, लेकिन लड़कियों के संबंध में हिसाब अलग है।
अगर संतति नियमन की बात पूरी होगी। होनी ही पड़ेगी। तो लड़कियां भी लड़कों जैसी मुक्त हो जायेगी। उनको फिर बांधने और दबाने का उपाय नहीं रहेगा। लड़कियां उपद्रव में पड़ सकती थीं,क्योंकि उनको गर्भ रह जा सकता है। पुरूष उपद्रव में नहीं पड़ता था, क्योंकि उसको गर्भ का कोई डर नहीं है।
नई व्यवस्था ने लड़कियों को भी लड़कों की स्थिति में खड़ा कर दिया है। पहली दफा स्त्री और पुरूष की समानता सिद्ध हो सकेगी। अब तक सिद्ध ने हो सकती थी। चाहे हम कितना भी चिल्लाते कि स्त्रियों और पुरूष समान है। वे इसलिए समान नहीं हो सकते थे। क्योंकि पुरूष स्वतंत्रता बरत सकता था। पकड़ा जाने के भय से स्त्री स्वतंत्रता नहीं बरत सकती थी।
विज्ञान की व्यवस्था ने स्त्री को पुरूष के निकट खड़ा कर दिया है। अब वे दोनों बराबर स्वतंत्र है। अगर पवित्रता निश्चित करनी है, तो दोनों को ही निश्चित करनी पड़ेगी। अगर स्वतंत्रता तय करनी है, तो दोनों समान रूप सक स्वतंत्र होगें।
बर्थ-कंट्रोल, संतति नियमन के कृत्रिम साधन स्त्री को पहली बार पुरूष के निकट बिठाते है। बुद्ध नहीं बिठा सके, महावीर नहीं बिठा सके। अब तक दुनियां में कोई महापुरुष नहीं बिठा सका।
उन्होंने कहा, दोनों बराबर हे। लेकिन वे बराबर हो नहीं सके। क्योंकि उनकी एन टॉमी,उनकी शरीर की व्यवस्था खास कर गर्भ की व्यवस्था कठिनाई में डाल देती थी। स्त्री कभी भी पुरूष की तरह स्वतंत्र नहीं हो सकती थी। आज पहली दफा स्त्री भी स्वतंत्र हो सकती है। अब इसके दो मतलब होंगे—या तो स्त्री स्वतंत्र की जाये या पुरूष की अब तक की स्वतंत्रता पर पुनर्विचार किया जाये।
अब सारी नीति को बदलना पड़ेगा। इसलिए धर्म-गुरु परेशान है। अब मनु की नीति को बदलना पड़ेगा। इस लिए धर्म गुरु परेशान है। अब मनु की नीति नहीं चलेगी, क्योंकि सारी व्यवस्था बदल जायेगी और इसलिए उनकी घबराहट स्वाभाविक है।
लेकिन, बुद्धिमान लोगों को समझ लेना चाहिए कि उनकी घबराहट,उनकी नीति को बचाने के लिए मनुष्यता की हत्या नहीं की जा सकती। उनकी नीति जाती हो कल, तो आज चली जाये। लेकिन मनुष्यता को बचाना ज्यादा महत्वपूर्ण है और ज्यादा जरूरी है। मनुष्य रहेगा तो हम नयी नीति खोज लेंगे,और अगर मनुष्यता न रही तो मनु की याज्ञवल्क्य की किताबें सड़ जायेगी। और गल जायेगी तथा नष्ट हो जायेगी। उनको कोई बचा नहीं सकता।
मैं परिवार नियोजन में मनुष्य के लिए भविष्य में बड़ी क्रांति की संभावनाएं देखता हूं।
इतना ही नहीं कि आप दो बच्चों पर रोक लेंगे अपने को, बल्कि अगर परिवार नियोजन की स्वीकृति उसका पूरा दर्शन हमारे ख्याल में आ जाये तो मनुष्य की पूरी नीति पूरा धर्म, अंतत: परिवार की पूरी व्यवस्था और अंतिम रूप से परिवार का पूरा ढांचा बदल जाएगा। कभी छोटी चीजें सब बदल देती है। जिनका हमें ख्याल नहीं होता।
मैं परिवार नियोजन और कृत्रिम साधनों के पक्ष में हूं, क्योंकि मैं अनंत: जीवन को चारों तरफ से क्रांति से गुजरा हुआ देखना चाहता हूं।
चीन से एक आदमी ने जर्मनी के एक विचारक को एक छोटी सी पेटी भेजी। लकड़ी की पेटी,बहुत खूबसूरत खुदाई थी उस पेटी पर। अपने मित्र को वह पेटी भेजी और लिखा कि मेरी एक शर्त है उसको ध्यान में रखना, इस पेटी का मुंह हमेशा पूर्व की तरफ रखना। क्योंकि यह पेटी हजार वर्ष पुरानी है और जिन-जिन लोगों के हाथ में गई है, यह शर्त उनके साथ रही है कि इसका मुंह पूर्व की तरफ रहे, यह इसे बनाने वाले की इच्छा है। अब तक पूरी की गई थी। इस का ध्यान रखना।
उसके मित्र ने लिख भेजा कि चाहे कुछ भी हो, वह पेटी का मुंह पूर्व की तरफ रखेगा। इसमें कठिनाई क्या है? लेकिन पेटी इतनी खूबसूरत थी कि जब उसने अपने बैठक खाने में पेटी का मुंह पूर्व की और करके रखा तो देखा कि पूरा बैठक खाना बेमेल हो गया। उसे पूरे बैठक खाने को बदलना पड़ा,फिर से आयोजितकरना पड़ा, सोफा बदलने पड़े,टेबल बदलने पड़े, फोटो बदलनी पड़ी। तो उसे हैरानी हुई कि कमरे के जो दरवाजे खिड़कियाँ थी। वे बेमेल हो गई। पर उसके पक्का आश्वासन दिया था तो उसने खिड़की दरवाजे भी बदल डाले। लेकिन वह कमरा अब पूरे मकान में बेमेल हो गया। तो उसने पूरा मकान बदल लिया। आश्वासन दिया था। तो उसे पूरा करना था। तब उसने पाया कि उसका बग़ीचा, बाहर का दृश्य फूल सब बेमेल हो गये। तब उसको उन सब को बदलना पडा।
फिर भी उसने अपने मित्र को लिखा कि मेरा घर मेरी बस्ती में बेमेल हुआ जा रहा है। इसलिए मैं बड़ी मुश्किल में पड़ गया हूं। अपने घर तक तो बदल सकता हूं, लेकिन पूरे गांव को कैसे बदलूंगा और गांव को बदलूंगा तो शायद वह सारी दुनिया बेमेल हो जाए। तो बड़ी मुश्किल हो जायेगी।
यह घटना बताती है कि एक छोटी सी बदलाहट अंतत: सब चीजों को बदल देती है।
धर्म गुरु का डरना ठीक है, वह डरा हुआ है। उसके कारण है। उसे अचेतन में यह बोध हो रहा है कि अगर संतति नियमन और परिवार नियोजन की व्यवस्था आ गई तो अब तक की परिवार की धारणा नीति सब बदल जायेगी।
और मैं क्यों पक्ष में हूं? क्योंकि मैं चाहता हूं कि वह जितनी जल्दी बदले, उतना ही अच्छा है। आदमी ने बहुत दुःख झेले लिए पुरानी व्यवस्था से, उसे नयी व्यवस्था चाहिए। जरूरी नहीं कि नयी व्यवस्था सुख ही लायेगी। लेकिन कम से कम पुराना दुःख तो न होगा। दुःख भी होगें तो नये होगें। और जो नये दुःख खोज सकता है, वह नये सुख भी खोज सकता है।
असल में नये की खोज की हिम्मत जुटानी जरूरी है। पूरे मनुष्य को नया करना है। और परिवार नियोजन और संतति नियमन केंद्रिय बन सकता है। क्योंकि सेक्स मनुष्य के जीवन में केंद्रिय है। हम उसकी बात करें या न करें। हम उसकी चर्चा करें या न करें, सेक्स मनुष्य के जीवन में केंद्रिय तत्व है। अगर उसमे कोई भी बदलाहट होती है तो हमारा पूरा धर्म पूरी नीति सब बदल जायेगी। वे बदल जानी ही चाहिए।
मनुष्य के भोजन निवास भविष्य की समस्याएं ही इससे बंधी नहीं है, मनुष्य की आत्मा मनुष्य की नैतिकता मनुष्य के भविष्य का धर्म मनुष्य के भविष्य का परमात्मा भी इस बात पर निर्भर है कि हम अपने यौन के संबंध में क्या दृष्टि कोण अख्तियार करते है।
ओशो
संभोग से समाधि की और
प्रवचन—9
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